दिल्ली में बस्तर के डॉ राजाराम त्रिपाठी को मिला “तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान

दिल्ली में बस्तर के डॉ राजाराम त्रिपाठी को मिला “तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान

अवार्ड को बस्तर की माटी तथा अपने आदिवासी साथियों को किया समर्पित

नई दिल्लीः छत्तीसगढ़ के बस्तर के कृषि उद्यमी, देश के जुझारू किसान नेता, साहित्यकार तथा जनजातीय सरोकारों, कला संस्कृति, साहित्य की मासिक पत्रिका “ककसाड़ ” के संपादक डॉ राजा राम त्रिपाठी को देश का प्रतिष्ठित “तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान-2021”  गांधी पीस फाउंडेशन GPF दिल्ली के सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में अट्ठाइस नवंबर को प्रदान किया गया। डॉ राजाराम त्रिपाठी को यह विशिष्ट सम्मान मुख्य अतिथि  रेमन मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त प्रख्यात गांधीवादी समाजसेवी एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान की पूर्व अध्यक्ष, राधा भट्ट , राज्यसभा सांसद दुष्यंत गौतम  के कर-कमलों से वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार मिश्र, प्रसून लतांत, तथा देश की गणमान्य विभूतियों की उपस्थिति में प्रदान किया गया। दुष्यंत गौतम कहा कि ने घोषणा की कि देश में तथा भागलपुर में अमर क्रांतिकारी शहीद “तिलकामांझी” स्मारक बनेंगे ताकि नई पीढ़ियां उनके बलिदान को जानें और प्रेरणा ले सकें।।यह सम्मान देश के आदिवासी समुदायों की सेवा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण संवर्धन आदि उत्थान कार्यों में निस्वार्थ भाव से, लंबे समय से संलग्न  संस्था अथवा व्यक्ति को प्रदान किया जाता है।  डॉक्टर त्रिपाठी  पिछले तीन दशकों से देश के सघन वन क्षेत्र बस्तर के आदिवासियों के लिए विशेषकर युवाओं तथा महिलाओं के लिए निस्वार्थ भाव से  सेवा कर रहे हैं। देश की कृषि तथा किसानों से संबंध समस्याओं, कृषि एवं ग्रामीण अर्थशास्त्र के वे गंभीर चिंतक तथा विशेषज्ञ माने जाते हैं। बस्तर के अपने खेतों को उन्होंने मानो प्रयोगशाला बना दिया है, जहां पर  नित नई नई फसलों तथा कृषि नवाचारों पर शोध कार्य करते हैं। वह देश की वर्तमान किसान आंदोलन के सैद्धांतिक सूत्रधार माने जाते हैं किंतु उनका सरोकार विशुद्ध किसानों की समस्याओं पर ही केंद्रित  रहा है। गांधीजी तथा विनोबा जी की विचारधारा से प्रभावित डॉ त्रिपाठी किसी भी प्रकार के दलीय राजनीतिक एजेंडे से सदैव पूरी तरह से दूर रहे हैं, और उन्होंने जनजातीय समुदाय, देश की कृषि,  पर्यावरण तथा जैव विविधता संरक्षण संवर्धन तथा विशेष रूप से देश की विलुप्त हो रही वनौषधियों को बचाने के कार्य को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। अब तक सात लाख से अधिक पेड़ लगा चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण संवर्धन के कार्यों को देखते हुए इन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित “हरित योद्धा अवार्ड ( ग्रीन वारियर अवार्ड) से भी सम्मानित किया जा चुका है!

उनके द्वारा विकसित की गई काली मिर्च की नई किस्म, जोकि अन्य सभी किस्मों से ज्यादा उत्पादन देती है तथा राजस्थान जैसे गर्म प्रदेशों में भी जिसकी भली-भांति खेती की जा सकती है,  देश के 25 से अधिक राज्यों में किसानों के बीच बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

बस्तर के बदलते आर्थिक सामाजिक परिवेश को उन्होंने अपनी कविताओं में ढाला है। उनके बहुचर्चित कविता संग्रह “मैं बस्तर बोल रहा हूं” , जिसका  अनुवाद अंग्रेजी तथा मराठी में  क्रमशः “यस इटज बस्तर स्पीकिंग” तथा “मी आदिवासी बोलतोय” के नाम से अनुवाद भी हो चुका है। डॉ त्रिपाठी ने अपना यह अवार्ड भी बस्तर की माटी तथा अपने  आदिवासी साथियों, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथियों व परिजनों को समर्पित करते हुए कहा कि इस अवार्ड से निश्चित रूप से बस्तर तथा छत्तीसगढ़ का गौरव बढ़ा है।