“मामा बालेश्वर दयाल-राष्ट्रीय पुरस्कार” से सम्मानित हुए छत्तीसगढ़ के डॉ. राजाराम त्रिपाठी

“मामा बालेश्वर दयाल-राष्ट्रीय पुरस्कार”  से सम्मानित हुए छत्तीसगढ़ के डॉ. राजाराम त्रिपाठी

नई दिल्ली, 9 जुलाईः हिंदी के प्रथम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 158 वीं जयंती तथा उनकी स्मृति समारोह के “रजत जयंती वर्ष” के उपलक्ष्य में ‘राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन’ , तथा ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति’, के तत्वावधान में 9 जुलाई को गांधी शांति प्रतिष्ठान, आईटीओ, नई दिल्ली में ‘मामा बालेश्वर दयाल पुरस्कार-2022’ से छत्तीसगढ़ कोंडागांव के डॉ राजाराम त्रिपाठी को सम्मानित किया। इस भव्य राष्ट्रीय समारोह में साहित्य जगत तथा मीडिया जगत की देश की गणमान्य विभूतियां शामिल हुईं। समारोह में डॉ राजाराम त्रिपाठी के अलावा साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में देश की सात चयनित महानुभावों जयप्रकाश पांडे इंडिया टुडे/आज तक, विख्यात वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोक दीप सिंह, भानु प्रकाश राणा फार्म एंड फूड, अलका सिंह दूरदर्शन समाचार वाचिका, ज्ञानेद्र रावत पर्यावरण विद, तथा जगदीश पीयूष जी को मुख्य अतिथि सुविख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल, देश के जाने माने पत्रकार अरविंद सिंह के करकमलों से  सम्मानित किया गया।

बालेश्वर दयाल जी (10 मार्च 1905 – 26 दिसंबर 1998)  इस देश के महान सामाजिक कार्यकर्ता और सही मायनों में निस्वार्थ जननायक थे। उन्हें राजस्थान और मध्य प्रदेश में भील जनजातियों के बीच रहकर उनके उत्थान के लिए किए गए कार्यों के लिए याद किया जाता है। उन्होंने जनजातीय समुदाय को जल, जंगल, ज़मीन और शिक्षा के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए संगठित किया था। आप राज्यसभा के सदस्य भी बनाए गए थे‌। कालांतर में सक्रिय राजनीति से संयास ले कर उन्होंने  भील समुदाय के बीच रहते हुए अपना पूरा जीवन उनके समग्र उत्थान के लिए उत्सर्ग कर दिया । आज भी भील जनजातियों के बीच में मामा बालेश्वर दयाल देवताओं की तरह पूजे जाते हैं। गांव गांव में उनकी मूर्तियां लगाई गई हैं और उनके गीत गाए जाते हैं।

डॉ राजाराम त्रिपाठी को यह अवार्ड उनके द्वारा विगत तीन दशकों से वनौषधि कृषि तथा जैविक कृषि क्षेत्र में जनजातीय समुदायों के जीवन में उन्नयन के लिए किए गए सतत अनूठे और अनुकरणीय कार्यों के लिए दिया  गया। बस्तर के ही आदिवासी वन ग्राम ककनार में जन्में तथा पले बढ़े राजाराम के अपने मन में अपनी मातृ-भूमि बस्तर के लिए कुछ कर गुजरने की बचपन से ही ठान ली थी। अंततः मित्रों परिजनों के लाख मना करने के बावजूद प्रतिष्ठित बैंक के उच्चाधिकारी की नौकरी छोड़कर वह विगत तीन दशकों से बस्तर के आदिवासियों के बीच जैविक तथा वनौषधियो की खेती में लगातार नवाचार करते हुए खेती को लाभदायक उद्यम बनाने में लगे हुए हैं। उनके इस कार्य में आज लाखों किसान जुड़ चुके हैं तथा बहुसंख्य युवाओं को उनका मार्गदर्शन तथा रोजगार भी मिला है। डॉ त्रिपाठी कृषि क्षेत्र में ज्वलंत विषयों को विभिन्न मंचों पर लगातार उठाने वाली देश की चुनिंदा प्रभावशाली आवाजों में से एक रहे हैं। इन्होंने अपनी कॉलेज शिक्षा के दिनों में ही कुछ अभिन्न मित्रों के साथ मिलकर प्रखर तेवर का साप्ताहिक समाचार पत्र “बस्तर टुडे”  भी प्रकाशित किया था, जो कि जल्द ही अर्थाभाव के कारण बंद हो गया, पर लेखन से उनका जुड़ाव सदैव बना रहा है । वर्तमान में डॉ त्रिपाठी दिल्ली से प्रकाशित जनजातीय चेतना,कला,संस्कृति एवं समाचार की मासिक पत्रिका “ककसाड़ ” के संपादक हैं। आप ग्रामीण अर्थशास्त्र, कृषि, रोजगार आदि विषयों पर देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे हैं। आप की अधिकांश कविताएं बस्तर के सरोकारों पर केंद्रित हैं तथा बस्तर को समर्पित हैं। इसीलिए आप को “बस्तर का सुर सप्तम” कवि कहा जाता है। आप बस्तर तथा बस्तर की स्थानीय बोली हल्बी की प्रबल पक्षधर हैं।

सम्मान समारोह में बोलते हुए डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि अपने आप को सभ्य तथा विकसित  कहलाने वाले समाज ने लगातार पर्यावरण तथा प्रकृति को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है और मानव जाति तथा पृथ्वी को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है। हमें बिना प्रकृति पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाये प्रकृति के साथ संतुलित सहजीवन की जीवनशैली बस्तर के जनजातीय समुदाय से सीखना चाहिए। जिस स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के अधिकार के लिए  आज के सभ्य तथा विकसित कहलाने वाले समाज में नारी‌ आज भी संघर्ष कर रही है, जनजातीय समुदाय में नारी को वह समानता, स्वतंत्रता और गरिमा सदियों से स्वत: ही प्राप्त है। इन समुदायों का सदियों सदियों से संचित बहुआयामी परंपरागत ज्ञान भंडार तथा प्रकृति की गहरी समझ आज के संक्रमण काल में शेष विश्व को सही राह दिखा सकता है।

डॉक्टर त्रिपाठी ने अपना यह अवार्ड बस्तर की माटी, अपने आदिवासी साथियों, गुरूजनों, समस्त परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों, स्थानीय प्रशासन के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों, मीडिया के सभी साथियों तथा मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सभी सदस्यों को समर्पित किया है और कहा कि आज इस अवार्ड को लेने वाले हाथ भले मेरे हैं, पर यह अवार्ड दरअसल बस्तर का है ,और बस्तर को ही सादर समर्पित है।