मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ जो मुझे दादा लख्मी जैसी महान हस्ती पर बनी फ़िल्म में काम करने का अवसर मिला है- हितेश शर्मा

मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ जो मुझे दादा लख्मी जैसी महान हस्ती पर बनी फ़िल्म में काम करने का अवसर मिला है- हितेश शर्मा

 

डॉ तबस्सुम जहां

भाई की मृत्यु की खबर सुनकर लख्मी घर जाना चाहता है पर उसके लिए कल होने वाला सांग करना भी ज़रूरी है। दुखी लख्मी का मन नाच गाने में नहीं लगता तो बेड़े का मालिक सोहनलाल उसे खरी खोटी सुना कर बहुत अपमानित करता है। छोटे भाई की मृत्यु से दुखी और अपमान से आहत वह युवक जब अपने कमरे में दाखिल होता है उसकी दशा समझते हुए सारंगी वादक धुलिया सारंगी बजाने लगते हैं। संगीत सुनते ही लख्मी बने युवक के पैर थिरकने लगते हैं। वह भावविभोर होकर नाचना शुरु कर देता है। उसका नाचना परमात्मा से सीधे उसके तार जोड़ता सा लगता है। यहाँ तक कि नाचते-नाचते उसके पैरों से खून निकल पड़ता है। पर फिर भी वह नाचता रहता है। सूफ़ियाना भाव के इस छोटे पर गज़ब के दृश्य में लख्मी बने इस युवक का नाम है हितेश शर्मा। यंग दादा लख्मी बने हितेश शर्मा ने अपने ज़बरदस्त अभिनय से इस सीन को अमर बना दिया है। आइए, हितेश शर्मा से उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करते हैं मशहूर फ़िल्म समीक्षक आलोचक डॉ तबस्सुम जहां के साथ।

डॉ तबस्सुम जहां- अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के विषय मे कुछ बताएं?

हितेश शर्मा- मेरा जन्म हरियाणा फरीदाबाद के सिकरोना गाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। मेरे परिवार में मेरे पिताजी एजुकेशन डिपार्टमेंट में लैब असिस्टेंट पद से रिटायर्ड हुए हैं। माता जी हाऊस वाइफ़ हैं। मेरे घर मे सभी जॉब करते हैं इसलिए मैं अभिनय के फील्ड में एक दम नया हूँ।

डॉ तबस्सुम जहां- अभिनय से कैसे आपका जुड़ाव हुआ। आपको क्यों लगा कि इस क्षेत्र में जाना चाहिए?

हितेश शर्मा-  मैं बचपन मे जब रामलीला देख कर घर आता था तब अपने गार्डन में जाकर इमेजिन करता कि मैं भगवान राम और हनुमान हूँ। मैं आंखें बंद करके ख़ुद को उसी रूप में मानकर घूम-घूम कर नाच-नाच कर ज़ोर से रामलीला के डायलॉग दोहराता। मुझे लगता कि मेरे हाथ मे धनुष बाण या गदा है और मैं भगवान राम या हनुमान का रोल प्ले कर रहा हूँ। तब मैं सोचता कि काश मैं भी कभी रामलीला में भगवान राम का रोल करूंगा। मेरे बालमन पर दस दिन होने वाली रामलीला का बहुत प्रभाव पड़ता। इस लिए कह सकते हैं कि रामलीला से ही मेरा सबसे पहले जुड़ाव हुआ। मेरा अभिनय के क्षेत्र से कोई लिंक नहीं था तब मुझे लगा कि रामलीला में अभिनय करने का मेरा सपना शायद पूरा नहीं होगा। फिर मैंने स्कूल तथा स्कूल के ज़रिए बाहर होने वाले नाटकों में भाग लेना शुरु किया। उसके बाद अपने मोहल्ले के ही ‘युवा शक्ति एकता मंच’ के अनेक प्रोग्राम में हिस्सा लेता रहा। इस प्रकार अभिनय से मेरा जुड़ाव स्कूल टाइम से ही हो गया था।

डॉ तबस्सुम जहां- अभिनय के क्षेत्र में आपको पहला अवसर कब मिला?

हितेश शर्मा- मैंने ग्रेजुएशन के बाद 2010 में मारवाह स्टूडियो में एशियन एकेडमी और फ़िल्म टेलीविजन AAFT, Noida में एक साल की एक्टिंग का कोर्स किया। उस वक़्त मैंने ठान लिया कि अब मैं एक्टिंग के अलावा कुछ करूंगा ही नहीं। वहाँ से मैं सही अर्थों में प्रोफेशनली एक्टिंग से जुड़ा उससे पहले तो मैं हवा में ही तीर चला रहा था। अभिनय के क्षेत्र में मुझे पहला अवसर क्राइम पेट्रोल से मिला।

डॉ तबस्सुम जहां- मुंबई में आप कब से रह रहें हैं यहाँ आकर किन-किन संघर्ष से जूझना पड़ा?

हितेश शर्मा – मैं 2011में मुंबई गया था। उस वक्त मेरे कॉलर खड़े थे और लगा कि अब तो मैं मुंबई जा रहा हूँ हीरो बनकर ही लौटूंगा। लेकिन जैसे ही मुंबई पहुंचा और वहाँ पहुँच के जो धक्के खाए तो पहले ही महीने में पता चल गया कि बेटा हितेश! यह सब इतना आसान नहीं है। पहले सोच के गया था कि सिर्फ़ फ़िल्में ही करुंगा सीरियल नहीं। फिर एक महीने बाद सोचा कि सीरियल मिला तो वो भी कर लूँगा। फिर कुछ वक्त सोचा कि जो कुछ मिलेगा वो भी कर लूँगा। फिर कुछ महीने बीते तब भी मुझे काम नहीं मिला तब मैंने सोचा कि अगर मैं बस एक दिन ही टी वी पर दिख जाऊं तो मेरे घरवाले ख़ुश हो जाएंगे तब मैं भगवान से एक दिन टी वी पर आने के लिए प्रार्थना करता कि हे भगवान! बस मेरी लाज रख ले और एक दिन मुझे टी वी पर दिखा दे, पर कुछ नहीं हुआ। मैंने इतना संघर्ष किया, हाथ पांव मारे तब भी मुझे मुंबई में काम नहीं मिला। मैं वापस दिल्ली आ गया। दिल्ली आकर मैंने यहाँ थियेटर शुरु किया मुझे लगता था कि मैं बहुत अच्छी एक्टिंग नहीं कर पा रहा हूँ क्योंकि कई बार ऑडिशंस के दौरान मुझे घबराहट होती थी इसलिए मैंने थियेटर करके अभिनय से जुड़ी कमियों को दूर करके ख़ुद में आत्मविश्वास जगाने का फैसला किया। इसी बीच मेरे दादा जी का स्वर्गवास हो गया तब विपरीत परिस्थितियों में भी मैंने दिल्ली में पूरी शिद्दत से दो साल थियेटर किया। मैं 2013 में वापस मुंबई चला गया और मैंने फिर से वहाँ पर धक्के खाए। यहाँ तक कि ऑफिस से मुझे धक्के मार कर निकाला गया। हुआ यह कि एक ऑफिस में मैंने सिर्फ़ इतना ही पूछा कि “क्या यहाँ ऑडिशंस चल रहे हैं?” फिर क्या था उन लोगों ने मुझे हाथ पकड़ कर बाहर कर दिया। दूसरे ऑफिस में गया जो एक बड़ी मशहूर कंपनी है वहाँ उन लोगों ने मुझसे कहा कि मैं वापस घर चला जाऊं, ‘यहाँ करोड़पति लोगों का काम होता है’, ‘आपके पास पैसे हैं या नहीं?’ ‘यदि आपका फैमिली बैकग्राउंड स्ट्रांग है तभी आपका कुछ हो सकता है’ वगैरह। उस वक्त व्हाट्सएप भी नहीं था तब ऑडिशंस वहाँ जाकर ही देना होता था। अब तो व्हाट्सएप पर या ऑनलाइन भी हो सकते हैं। फिर आजकल तो कास्टिंग एजेंसी खुल गई हैं पर उस वक़्त यह सब इतना आसान नहीं था बड़ी मेहनत करके चीज़े मिलती थी ख़ासकर ऑडिशंस वाली जगह। अगर मुझे किसी ने बताया कि कनाटप्लेस में ऑडिशंस हो रहे हैं तो उस वक़्त मुझे पूरा ही कनाटप्लेस छानना पड़ता। डोर टु डोर जाकर ऑडिशंस वाली जगह ढूँढनी पड़ती और यह सब बहुत थकाने वाला होता। तब मैं नया था और मेरे पास कुछ लिंक्स भी नहीं थे। ऐसे में कई लोग मुझे डांट देते, भगा देते, कहते यहाँ नहीं वहाँ जाओ। तब मैं एक बुक लेकर आया उसमें डायरेक्टर एक्टर और प्रोड्यूसर के नम्बर थे मैनें उनको फोन करना शुरु किया।

डॉ तबस्सुम जहां- अभी तक की अभिनय यात्रा के विषय मे कुछ बताएं। सफ़र कैसा रहा?

हितेश शर्मा-  अभिनय की यात्रा ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। 2010 से 2022 तक मुझे ज़िंदगी जीना आ गया है। यह अच्छे से पता चल गया कि वास्तव में संघर्ष होता क्या है। असल में अभिनय ने मुझे संर्घष करना सिखाया है वरना मैं भी कहीं कोई जॉब कर रहा होता और शायद बहुत ही संतुष्टि वाली ज़िंदगी जी रहा होता। लेकिन आज मुझे जीवन जीना आ गया है। मुझे कितनी चीज़े समझ आ गई हैं कि सफलता पाने के लिए…आपको अपनी मनपसंद सफ़लता पाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। धैर्य रखना पड़ता है, जोश रखना पड़ता है, जज़्बा रखना पड़ता है यह सब इस अभिनय की यात्रा ने मुझे सिखाया है। किसी भी काम के लिए जुनून होना बहुत ज़रूरी है।

डॉ तबस्सुम जहां- दादा लख्मी फ़िल्म आपको कैसे मिली। उससे जुड़ा आपका कोई अनुभव?

हितेश शर्मा- मैं दादा लख्मी फ़िल्म के निर्देशक यशपाल सर से पहली बार मुंबई में मिला था। रविन्द्र राजावत सर में मुझे उनसे मिलवाया था। यशपाल सर ने मुझसे पहला सवाल यही पूछा कि ‘आपको डांस आता है’ मैंने कहा कि मैं फ़िलेक्सिबल हूँ डांस कर सकता हूँ। तब सर ने बोला कि फिलेक्सिबलिटी नहीं चाहिए हमें डांस चाहिए। तब मैंने उनको अपने डांस के कुछ वीडियो बना कर भेजे। शायद उनको वीडियो पसंद नहीं आई। तब मैंने अपने गुरु श्री राम जी बाली के कहने पर दुबारा से वीडियो बना कर भेजी जो मेरी नज़र में ठीक ठाक थी। कुछ समय बाद मैंने तीसरी वीडियो बना कर भेजी तब भी कोई जवाब नहीं मिला। फिर मैंने चौथी बार यू ट्यूब से कुछ हरियाणवी डांस स्टैप सीखे और एक नया वीडियो बनाकर भेजा। मैंने तकरीबन छह महीने में 8 से 10 वीडियो बनाकर भेजे तब कहीं जाकर उनका रिस्पॉन्स आया ‘मच बैटर’। तब सर ने मुझसे अपने काम के लिंक शेयर करने को कहा। जब मैं दिल्ली ट्रेन से आ रहा था तब अचानक यशपाल सर का मैसेज आया कि मैं उनको अपने फोटो भेजूं। तब मैंने उनको फोन करके बताया कि मैं दिल्ली आ रहा हूँ। सर ने कहा कि मैं दिल्ली में द्वारका आकर उनसे मिलूं। मैं उनसे दिल्ली में मिला जहां उन्होंने कुल मिलाकर अलग-अलग छह ऑडिशंस लिए। इतना ही नहीं मुझे 100 लोगों के सामने डांस करने को कहा गया। तब भी मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ। उसके कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरा सिलेक्शन हो गया है। मुझसे कहा गया कि शूटिंग के दौरान अगर मेरा काम स्तरीय नहीं लगा तो मुझे हटा दिया जाएगा क्योंकि उनको फ़िल्म के लिए जो बेस्ट होगा वो करना था बेशक आप उसमें हों या न हों। पर भाग्य कहिए या कुछ और फाइनली मुझे दादा लख्मी का रोल मिल गया।

डॉ तबस्सुम जहां- दादा लख्मी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है।। इसमें अपने रोल के विषय मे कुछ बताइए?

हितेश शर्मा- दादा लख्मी फ़िल्म ने अभी नेशनल अवार्ड जीता है। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह फ़िल्म 78 से ज़्यादा अवार्ड जीत चुकी है। ‘कांस’ में भी इसे दिखाया गया है। इस फ़िल्म में मेरा रोल यंग लख्मी का है।

डॉ तबस्सुम जहां- आप मानते हैं कि दादा लख्मी फ़िल्म हरियाणवी सिनेमा के परिदृश्य को बदल देगी?

हितेश शर्मा- जी बिल्कुल। हरियाणा ही नहीं यह फ़िल्म देश बल्कि विश्व मे हलचल मचा सकती है ऐसा मेरा विश्वास है। जो कोई भी इस फ़िल्म को देख कर निकल रहा है वो इसकी प्रशंसा करते नहीं थक रहा है। फ़िल्म सीधे सीधे सबके दिल में उतर रही है। बच्चे, यंग जेनरेशन, बुज़ुर्ग सभी को यह फ़िल्म पसंद आ रही है। सभी फ़िल्म को देख कर बहुत भावुक हो रहे हैं। सिनेमा हॉल से फ़िल्म देख कर निकले लोगों की आंखें नम हैं। इस फ़िल्म को लोगों का इतना ज्यादा प्यार मिल रहा है जो हमारे लिए किसी अवार्ड से कम नहीं है। फ़िल्म से लोग खुद का जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। लोग बार बार फ़िल्म देखने आ रहे हैं। किसी फ़िल्म से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव मैंने पहली बार देखा है। जब आम पब्लिक हमारे साथ है तब हमारी जीत पक्की है। दूसरे, हरियाणा में बहुत समय बाद ऐसी लहर आई है। रिलीज़ होने से लेकर अब तक हमारी फ़िल्म हाउसफ़ुल रही है। पब्लिक का आउट ऑफ कंट्रोल प्यार इस फ़िल्म को मिल रहा है। इस फ़िल्म की सफलता का डंका बॉलीवुड तक बजने लगा है। मुझे मुंबई से फोन आ रहे हैं कि आपकी फ़िल्म हिट हो चुकी है बधाई हो। बड़े-बड़े डायरेक्टर मुझे फोन कर रहे हैं। इसका नतीजा यह होगा कि अब बॉलीवुड भी हरियाणा की तरफ रुख करेगा। हरियाणा स्टेज एप और हरियाणवी के सिनेमा से जुड़े लोग भी अब आगे और भी बेहतर करने की ओर प्रेरित होंगे। सच कहें तो दादा लख्मी फ़िल्म ने हरियाणवी सिनेमा जगत का परिदृश्य बदल दिया है।

डॉ तबस्सुम जहां-  दादा लख्मी में आपका रोल बेमिसाल है। क्या इस रोल के लिए आपने दादा लख्मी के जीवन पर कोई रिसर्च किया था?

जवाब- इस फ़िल्म की रिसर्च के लिए मैंने दादा लख्मीचंद के जीवन ने जुड़ी अनेक किताबें पढ़ी। क्योंकि फ़िल्म ग्रामीण परिवेश पर आधारित थी इसलिए मैंने गाँव के परिवेश को अच्छे से समझने के लिए गाँव गाँव घूमना शुरु किया। मैंने दादा लख्मीचंद जी के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी प्राप्त की। मैंने यह भी जाना कि आम आदमी उनके बारे में क्या सोचता है? आम आदमी के सामने दादा की छवि क्या थी? मैंने शूटिंग से एक महीने पहले धोती-कुरता पहनना शुरु कर दिया था। मेरी बोलचाल की शैली फरीदाबाद क्षेत्र की है मैंने डायलॉग डिलीवरी के लिए सोनीपत की बोलचाल में खुद को ढालना शुरु किया इसके लिए मैंने उस इलाके के लोगों के साथ रहना शुरु किया। मैंने डांस की प्रैक्टिस करना शुरु की और तक़रीबन 16-16 घण्टे डांस की रिहर्सल करता था। इसके लिए मेरे दोस्त पंकज, साहिल और रोहित ने भी मेरी ख़ूब मदद की। मैं दादा लख्मी की स्क्रिप्ट को रोज़ 20-20 बार पढ़ता था ताकि उसका एक एक शब्द आत्मसात कर सकूं।

डॉ तबस्सुम जहां- भविष्य में आप किन किन प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं?

हितेश शर्मा- मैंने फ़िलहाल ‘भाभी जी घर पर हैं’ सीरियल में काम करना शुरु किया था लेकिन मैन उनको मना कर दिया क्योंकि दादा लख्मी का प्रमोशन शुरु हो गया था। मैंने सोचा कि जब तक हमारी फ़िल्म सिनेमा हॉल में लगी है और उसका प्रमोशन करना है तब तक मैं कोई भी नया प्रोजेक्ट नहीं करुंगा। अभी मेरे लिए दादा लख्मी फ़िल्म ही सब कुछ है। मैं बहुत खुशनसीब हूँ जो मुझे दादा लख्मी फ़िल्म में काम करने का अवसर मिला है। दादा लख्मी फ़िल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई है। यह ईश्वर का आशीर्वाद है आगे भी उसने मेरे लिए कुछ बेहतर ही सोचा होगा।