राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में हिंदी माह का समापन

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में हिंदी माह का समापन

अनवर हुसैन

कोलकाता : 01 अक्तूबर 2021. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल), पूर्वी क्षेत्रीय न्यायपीठ, कोलकाता में चल रहे ‘हिंदी माह’का समापन समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र, कोलकाता के सहायक प्रोफ़ेसरएवं युवा लेखक-विचारक डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं वर्तमान में एनजीटी, कोलकाता के न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति बी. अमित स्थालेकर ने की। विशिष्ट वक्ता थे एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्य एवं भारतीय वन सेवा के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शैबाल दास गुप्ता।

इस कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य एनजीटी के पंजीयक एवं प.बंगाल उच्च न्यायिक सेवा से संबद्ध शुभायु बनर्जी ने दिया,संचालन हिंदी अधिकारी डॉ बृजेश यादव ने किया तथा आभार ज्ञापन अनुभाग अधिकारी कोमल जैन यादव ने किया। इस आयोजन में कमर्शियल कोर्ट के न्यायाधीश नेयाज़ आलम तथा एनजीटी के उप-पंजीयक व त्रिपुरा न्यायिक सेवा से संबद्ध राहुल राय भी उपस्थित थे। इस आयोजन में संस्था कर्मियों ने भी बड़े ही उत्साह से भाग लिया तथा विशेष रूप से आमंत्रित बच्चों नेअपनी अनूठी प्रस्तुतियाँ दीं। कविता,लघुकथा,गीत, भाषण आदि के रूप में सुभाष निठारवाल, धीरेन्द्र गुप्ता, कोमल जैन यादव, मोहित नागपाल, प्रवेश कुमार एवं सिद्धार्थ झा की प्रस्तुतियाँ महत्वपूर्ण रहीं। वहीं नन्हें-मुन्ने बच्चों के रूप में प्रबुद्ध विहान, आद्या राव एवं काव्या निठारवाल ने अपनी सुंदर प्रस्तुतियों से सबका मन मोह लिया। कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि डॉ सुनील कुमार ‘सुमन’ को शॉल एवं पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर ‘‘राजभाषा हिंदी के समक्ष उपस्थित चुनौतियाँ’’ विषय पर बोलते हुए डॉ सुनील ने कामकाजी हिंदी को जटिलता और क्लिष्टता से मुक्त करने की वकालत की और उसे भारतीय भाषाओं के स्वरूप में ढालने पर भी बल दिया। उन्होंने किसी भी भाषा में शुद्धतावाद व कट्टरता को नुकसानदेह बताया। शैबाल दास गुप्ता ने हिंदी से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि राजभाषा हिंदी को व्यावहारिक धरातल पर उतरकर काम करना होगा, तभी उसकी व्यापक स्वीकृति बन पाएगी। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में न्यायमूर्ति बी. अमित स्थालेकरने राजभाषा के रूप में समावेशी हिंदी को अपनाने की जरूरत बतलाई, जिसमें पूरे भारत की भाषाएँ स्थान पाएँ। उन्होंने सहजग्राह्य हिंदी को कामकाजी हिंदी की भाषा बनाने पर बल दिया।