वे भी हैं संविधान निर्माता

वे भी हैं संविधान निर्माता

                                                                                         शुभ स्वप्ना मुखोपाध्याय

                                                                               छात्रा – प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय कोलकाता

‘ न ‘ से नारी और ‘न’  से  ‘ निर्माण ‘ । लेकिन स्त्री को किसी भी चीज़ का कारीगर मानलेना समाज के लिए उतना भी आसान नहीं। परन्तु नियम पालन की बात हो तो उससे नारी को सरासर जोड़ा जा सकता है।  नहीं , यहां वही जानी पहचानी-सी नारी पराधीनता के ओझल बातें उभरने नहीं जा रहे हैं। आज एक विशेष दिन है इसलिए भारत मां की एक अनोखी तनया के वैशिष्ट्य वर्णित करने के उद्देश्य से शब्द सजाना है । आज से ठीक तीन दिन पहले भारत नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिवस बीता।  भारत से जुड़े उनके सपने और उन्हें पूरा करने की चेष्टा से उनका आत्मबलिदान,  इसके बारे में कुछ कहने का आरंभ तो किया जा सकता लेकिन अंत असंभव है ।

सन् १९३९ का जुन महिना, नेताजी के नेतृत्व में फरर्वाड ब्लॉग  संगठित हुआ। इस कार्य  में नेताजी को जिनसे खास सहयोग मिला था वे हैं अनिल राय और उनकी पत्नी लीला राय और आज इसी वीरांगना की छवि को स्पष्ट करने का इरादा है।  तब उनका नाम लीला नाग था । इस विदूषी का सबसे अहम परिचय यह है कि भारतीय संविधान प्रस्तुत करने के लिए जो मंडली बनी थी, उसमें जिन १५ महिलाओं को निर्वाचित किया गया था, ये उन में से अन्यतम हैं।अविभाजित बंगाल के एक साधारण घर की लड़की। हालांकि उनका जन्म सन् १९०० में आसाम के गोआलपाड़ा में हुआ लेकिन उनकी पितृभूमि ढाका बांग्लादेश के सिलेट में था । पिता गिरीशचंद्र नाग बंगाल तथा आसाम के सिविल सार्विस में नियुक्त थे । वे एक तेजस्वी, सेवाव्रती तथा न्यायप्रिय व्यक्ति थे। उनकी मां का नाम था कुंजलता ।   लीला के नानाजी प्रकाशचंद देव आसाम सेक्रेटारियट के पहला भारतीय रेजिस्ट्रार थे । वे भी सत्यानिष्ट तथा परोपकारी इंसान थे । बचपन से ही लीला को उनकी मां से यह शिक्षा मिली थी कि त्याग से सेवा धर्म को निभाया जा सकता है। मां की शिक्षा ने लीला को आदर्श जीवन के कर्मों से प्रबुद्ध किया। पिता तथा नाना ब्रिटिश सरकार के कर्मचारी थे फिर भी छोटी सी लीला ने सन् १९०५ से घर में विदेशी कपड़ों को वर्जित होते देखा। उसकी जगह बंगलक्ष्मी के मोटे धागे के कपड़े पहनने को मिलता था । जिस दिन खुदिराम बोस की फांसी हुई, उस दिन इनके घर चुल्हे तक नहीं जला था। परिवार के सभी लोग अश्रु धारा के माध्यम से देश के प्रथम शहीद के प्रति श्रद्धांजलि दी ।

लीला एक होनहार छात्रा थीं। विद्यालय की परिधि पार कर , कोलकाता के बेथुन कॉलेज में प्रावीण्य अंग्रेजी साहित्य लेकर भर्ती हुई। सन् १९२१ में प्रथम स्थान ग्रहण कर बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण हुईं, जिसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था। उसी साल वे ढाका विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करने के लिए प्रवेश की क्योंकि उनके पिता की बदली हुई बंगलादेश में, फलस्वरूप सपरिवार वे भी गयी। लेकिन उनदिनों ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ  छात्राओं के पढ़ने की रीति शुरू नहीं हुई थी। हां बिल्कुल वहां भी उन्होंने एक इतिहास रची ।‌

केवल अध्ययन अथवा देशप्रेम ही नहीं, नारीशिक्षा तथा नारी अस्तित्व जैसे विषयों में जागरूकता लाने के लिए भी अनन्त चेष्टाएं वे करके गयीं ‌ । छात्रावस्था में ही वे ‘निखिल बंग नारी वोटाधिकार समिति ‘ की अन्यतम सम्पादिका बनीं।  इस संघ का उद्देश्य स्त्रियों को सामाजिक व आर्थिक अधिकार प्रदान करना था। दिसंबर १९२३ में नारीशिक्षा के प्रसार हेतु दिपाली संघ के नाम से एक संगठन तैयार की । १९२५ में श्रीसंघ नामक एक क्रांतिकारी दल में वे शामिल हुई। सन् १९२७-१९२८ इस समय समाज जब नारियों को शारीरिक अत्याचार से जकड़ रहा था, लीला, ‘महिला आत्मरक्षा फांड’ के नाम से एक फांड तैयार की जिसके सहारे नारियों को शारीरिक कसरत और आत्मरक्षा की सीख दिया जाता था। जयश्री नामक एक पत्रिका की संपादिका थी लीला, यह पत्रिका स्त्रियों के विषय पर ही आधारित थी।

सत्याग्रह आंदोलन के एक सक्रिय सदस्य होने के कारण, ‘ढाका महिला सत्याग्रह कमिटी ‘ संगठित की ।

‘श्रीसंघ’ के प्रधान संगठक अनिल राय को जब गिरफ्तार किया गया तब संंघ का संपूर्ण दायित्व लीला के कंधों पर सौंपा गया। सन् १९३० के २० दिसंबर के दिन लीला को भी गिरफ्तार किया गया और बिना किसी विचार के उन्हें कारावास की सजा सुनाई गई।

सन् १९३९ में लीला नाग और अनिल राय का विवाह हुआ। फिर वे दोनों नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को फरर्वाड ब्लॉग तैयार करने में संपूर्ण सहयोग दिया। लीला फरर्वाड ब्लॉग के साप्ताहिक पत्रिका का दायित्व एक सफल सम्पादिका के रुप में निभाई थी। वे जब पश्चिम बंगाल आई तो तब से राजनीति से जुड़ गयीं। सन् १९४६ में वे बंगाल से भारतीय गणपरिषद की सदस्या के रूप में चुनीं गई और हमारे देश के शासनतंत्र अर्थात संविधान प्रस्तुत करने में पूर्ण योगदान दीं। अर्थात बात स्पष्ट है कि इस विस्तृत परिधि के परिवार यानि कि देश के नियम श्रृंखला अगर नारी बना सकती हैं तो उसे रक्षा करना, उसे समृद्ध तथा गौरवशाली बनाना भी उनके लिए हर हाल में संभव है। इस गणतंत्र दिवस पर देश के प्रत्येक नारी को  उनकी मौजूदगी स्वीकारते हुए सश्रद्ध प्रणाम।