प्रेमचंद सभी विमर्शों के बीच पुल हैंः डॉ. शंभुनाथ

प्रेमचंद सभी विमर्शों के बीच पुल हैंः डॉ. शंभुनाथ

कोलकाता, 30 जुलाईः भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से परिषद सभागार में आयोजित ‘प्रेमचंद जयंती’ में देश के कई विद्वान और बड़ी संख्या में नौजवान उपस्थित हुए। प्रेमचंद विमर्शो के बीच पुल’ विषय पर चर्चा के दौरान यह कहा गया कि आज स्त्री, दलित, आदिवासी विमर्शों के विभाजनों के सामने प्रेमचंद सभी तरह के सामाजिक उत्पीड़नों के बीच एक मजबूत पुल की तरह दिखाई देते हैं। उनका कथा साहित्य हिंदुस्तान को जानने की खिड़की है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य हमें भारतीयता की मुकम्मल दृष्टि देता है। उन्होंने भारतीय जनता के सुख-दुख का साहित्य लिखा जो आज भी प्रेरणादायक है। ओडिशा के रेवेंशा बुनिवर्सिटी की प्रो. अंजुमन आरा ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने कथा साहित्य के केंद्र में स्त्री को रखकर उसकी वास्तविक स्वतंत्रता का सवाल उठाया। स्काटिश चर्च कॉलेज की प्रो. गीता दूबे ने यह बताया कि प्रेमचंद के साहित्य में सभी विमर्शों के बीज हैं। उनका उद्देश्य मानवीय दृष्टि का प्रसार करना था। खुदीराम बोस कॉलेज की प्रो. शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद ने बताना चाहा कि सांप्रदायिकता से बाहर निकलकर ही राष्ट्र का विकास संभव है।

प्रथम सत्र के अध्यक्ष डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि प्रेमचंद विमशों के बीच पुल हैं। वे अपने समय के सभी उत्पीड़नों के बीच पुल बनाना चाहते थे जो आज के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रेरणा है। उनका साहित्य हिंदुस्तान की हालत और ताकत का आईना है। आरंभ में परिषद के उपाध्यक्ष श्री प्रदीप चोपड़ा ने कहा कि प्रेमचंद ने नमक का दारोगा’ कहानी में भ्रष्टाचार को एक समस्या के रूप में दिखाया है जिसमें आज के भारत की भी तस्वीर है। प्रेमचंद जयंती के संयोजक और विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि आज विद्यार्थियों और नौजवानों की इतनी बड़ी उपस्थिति प्रेमचंद की लोकप्रियता का प्रमाण है। हिंदी भाषियों को चाहिए कि वे अपने महान साहित्यकारों को याद करें और उनसे प्रेरणा लें। इस सत्र का संचालन श्रीमती मनीषा गुप्ता ने किया।

दूसरे सत्र में खिदिरपुर कॉलेज के प्रो. इतु सिंह ने अल्पसंख्यकों की समस्या उठाते हुए प्रेमचंद के नाटक कर्बला की चर्चा की। उन्होंने कहा हर धर्म का व्यक्ति उदार है पर राजनीति उसे क्रूर बना देती है। राजभाषा से जुड़े श्री मृत्युंजय ने कहा कि आज गांधी और प्रेमचंद जैसे व्यक्तियों को छोटा दिखाने की कोशिश हो सकती है पर ये भारतीय राष्ट्रीयता के सच्चे निर्माता थे। प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के प्रो. वेद रमन ने कहा कि प्रेमचंद का लेखन और जीवन दोनों महत्वपूर्ण है। वे राष्ट्रीयता तक सीमित नहीं थे बल्कि अंतरराष्ट्रीय भाईचारे की बात करते थे। हिंदी के वरिष्ठ कवि श्री अष्टभुजा शुक्ल (बस्ती) ने कहा कि प्रेमचंद बिगाड़ से डरे बिना ईमान की बात कही। उनका साहित्य प्रश्न उठाता है और वे अपने लेखन से नए भारत की कल्पना कर रहे थे। इस सत्र का संचालन श्री नगेंद्र पंडित ने किया। प्रेमचंद जयंती के विभिन्न सत्रों में गुलनाज बेगम, लिली शाह, अनूप कुमार, प्रियंका सिंह, सुमन शर्मा, आदित्य कुमार गिरि, पूजा मिश्रा, दीक्षा गुप्ता, नवारुण भट्टाचार्य, श्रद्धा सिंह, प्रकाश त्रिपाठी, निखिता पांडेय ने आलेख पाठ किया। इस अवसर पर संस्कृति नाट्य मंच की ओर से ‘हिंसा परमो धर्मः नाटक का मंचन हुआ। इसमें इबरार खान, मधु सिंह, राहुल गौड़, पंकज सिंह, विशाल कुमार साव,राजेश सिंह, सूर्यदेव राय,रवि पंडित, कोमल साव,चंदन भगत,सपना कुमारी, मो. इजराइल ने अभिनय किया। जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा। इस अवसर पर आसनसोल, वर्द्धमान, मिदनापुर, खड़गपुर, कुल्टी,कल्याणी आदि शहरों के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।धन्यवाद ज्ञापन श्रीप्रकाश गुप्ता ने किया।