बांग्ला नवजागरण को यूरोपीय नवजागरण से अलग देखने की जरूरत हैः डॉ. शंभुनाथ

बांग्ला नवजागरण को यूरोपीय नवजागरण से अलग देखने की जरूरत हैः डॉ. शंभुनाथ

कोलकाता, 11 जूनः ‘कोलकाता सोसाइटी फॉर एशियन स्टडीज’, ‘मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज’ और ‘भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण’ के संयुक्त तत्वावधान में “भारत और विश्व के सुनिश्चित भविष्य के लिए बंगाल के नवजागरण के सार्वभौमिक मिशन की

प्रासंगिकता” विषय पर दो दिवसीय त्रिभाषी(हिंदी, बंगला और अंग्रेजी) अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कोलकाता के  एशियाटिक सोसायटी के महासचिव डॉ सत्यब्रत चक्रवर्ती ने इस आयोजन को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि बंगला नवजागरण के कई महत्वपूर्ण सुधारक होने के बावजूद सभी मानवीय, धर्मनिरपेक्ष ,सहिष्णुता और नई चेतना के समर्थक थे। आयोजन के दूसरे दिन हिंदी सत्र के प्रथम सत्र में बतौर चेयर स्पीकर डॉ शंभुनाथ ने ‘बांग्ला नवजागरण:भारतीय परिपेक्ष्य’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि बांग्ला नवजागरण को यूरोपीय नवजागरण से अलग देखने की जरूरत है क्योंकि भारतीय नवजागरण बहुरंगा है।यहां के नवजागरण का संबंध पुनरुत्थानवाद, संरक्षणशील परंपरा के साथ आधुनिक विचारों से भी है। इस अवसर पर ऑनलाइन माध्यम से जुड़ते हुए रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के प्रो. हितेंद्र पटेल ने ‘बांग्ला नवजागरण, हिंदी भाषी बौद्धिक समाज और देश-चिंता: कुछ विशेष संदर्भ’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि बंगला नवजागरण ने भारतीय नवजागरण की जमीन तैयार करता है।बंगाल के बुद्धिजीवी पश्चिमी नवजागरण को उम्मीद की नजर से देखते हुए भी राष्ट्रप्रेम से जुड़ते हैं।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रो. राम आह्लाद चौधरी ने विद्यासागर की महत्ता बताते हुए कहा कि वे मानवता और सामाजिक सुधार के पक्षधर थे। इसके अलावा रवि पंडित ने ‘हिंदी भाषियों पर 19वीं सदी में बंगाल के सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव’ विषय पर और आदित्य कुमार गिरि ने ‘बांग्ला नवजागरण और हिंदी नवजागरण’ विषय पर आलेख पाठ किया। दूसरे सत्र के चेयर स्पीकर विद्यासागर विश्वविद्यालय के डॉ संजय जायसवाल ने ’19वीं और 20वीं शताब्दी का बंगाल:रचनात्मक उत्कृष्टता संदर्भ बांग्ला नवजागरण एवं साहित्यिक सिनेमा’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि बंगाल की रचनात्मक उत्कृष्टता औपनिवेशिक शासन में आकार पाता है।पश्चिमी आधुनिकता से प्रभावित होने के बावजूद भारतीय नवजागरण वेदांत, बौद्ध धर्म और भक्ति आंदोलन की परंपरा से विच्छिन्न नहीं होती है। इस सत्र में मधु सिंह ने ‘रवींद्रनाथ ठाकुर: मनुष्यता एवं भारतीयता के लेखक (संदर्भ: निराला कृत रवींद्र कविता कानन)’ विषय पर और रूपेश कुमार यादव ने ‘रवींद्रनाथ, हिंदी साहित्य और नवजागरण’ विषय पर आलेख पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन उत्कर्ष श्रीवास्तव तथा कार्यक्रम का संयोजन डॉ  शर्मिष्ठा बसु, अर्पिता बसु, सांतनु कुमार मंडल और रोमी आनंद ने किया।