90 बनाम 10 फीसद का विकास माडल
– महेंद्र सिंह
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस )की बेचैनी बढ़ी है,बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच ही उसकी साख पर अब संकट खड़ा हो गया है।आरएसएस मौजूदा बीजेपी सत्ता पर जिस ढंग का लांछन मढ कर पल्ला झाड़ रहा है,पिछले एक दशक के अंदर नरेंद्र मोदी सत्ता ने मुस्लिम एजेंडा की आड़ में बहुसंख्यक हिंदुओं के एक बड़े वर्ग को संवैधानिक अधिकारों से जिस नियोजित ढंग से वंचित किया, लोकसभा चुनाव का परिणाम हिंदुत्वा अस्तित्व के प्रति उसके भविष्य का संकेत है।
21 वीं सदी में राहुल गांधी विश्व क्षीतिज पर खड़े दिखाई पड़ रहे है। उनके बढ़ते कद से संघ परिवार में अब बेचैनी बढ़ गई है। लोकतंत्र को लेकर दुनिया दो भागों में बंटा है फासीवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता। राहुल धर्मनिरपेक्ष भारत के सबसे बड़े पैरोकार के रूप में उभरे हैं। आबादी की लिहाज से भारत विश्व का बड़ा देश है,यहां लोकतंत्र की संवैधानिक पृष्ठभूम पर जिस प्रकार मोदी काल में हमला शुरू हुआ,इसकी प्रतिक्रिया पूरी दुनिया भर में होने लगी। बहुसंख्यक हिंदुओं की स्वायत्तता की आड़ में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर अतिक्रमण हुआ और यही नहीं अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक कार्यवाही से लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल गई। चारो तरफ खौफ का साया गहराने लगा।मापलिचिंग,बुलडोजर जैसी कार्यवाही के कारण संवैधानिक संस्थाओं की शक्ति को ही हाशिए पर खड़ा कर दिया गया।
मोदीकाल में वीर सावरकर व नाथूराम गोडसे को स्वतंत्र भारत के इतिहास में हिंदू नायक के रूप में जिस ढंग से स्थापित करने की असफल कोशिश की गई वह स्वतंत्रता आंदोलन के वीर शहीदों की बलिदान के लिए चुनौती थी। राहुल ने दोनों कथित नायकों की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की।
नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान का नारा स्वतंत्रता की अमृतकाल में देश की सड़कों पर गूंजने लगा,नए ढंग का भारत,राहुल गांधी ने कन्या कुमारी से कश्मीर व मणिपुर से महाराष्ट्र की दूरी तय कर जनता में विश्वास पैदा किया कि अभी लोकतंत्र जिंदा है। चार जून, भारतीय लोकतंत्र की ऐतिहासिक तारीख बना जब जनता ने स्वतंत्रता का मतलब महसूस किया,मोदी की बीजेपी सत्ता अब एनडीए में बदल चुकी है यानी बैसाखी सरकार। ईडी,आईटी,सीबीआई,चुनाव आयोग,न्यायालय और न जाने कौन – कौन सी संवैधानिक संस्थाएं सत्तारूढ़ दल की सुरक्षा कवच के तौर पर विपक्षी दलों के विरुद्ध कार्यवाही में सक्रिय थी।
राहुल गांधी जब सार्वजनिक कार्यक्रम में होते हैं,उनके हाथ में इन दिनों एक लाल कवर की पुस्तक होताी है,यह पुस्तक संविधान की है,गांधी,पुस्तक को दिखाकर देश के 90 फीसद आबादी को सामाजिक न्याय का भरोसा देते है,इसमें पिछड़ा,दलित,आदिवासी,अल्पसंख्यक व अन्य शामिल हैं।
राहुल, नरेंद्र मोदी की सत्ता व आरएसएस की खुलकर आलोचना करते हैं। वह जोर देते हुए कहते हैं कि,मोदी सत्ता ने भारत को दो देश में बांट दिया है- एक देश जिसमें अडानी,अंबानी सहित दर्जनों कारपोरेट हैं और दूसरा देश जिसमें पांच किलोग्राम अनाज पर पेट पालने वाले लोग हैं। ऐसे गरीब लोगों का सपना ही मोदी सत्ता ने छीन लिया है।
उल्लेखनीय है कि मोदी काल की सत्ता की उपलब्धियों में शीर्ष पर रही मीडिया जो सरकार की एजेंडा पर टिकी रही,जनता की सरोकार से बिलकुल अलग जबकि सोशल मीडिया आम जनता की आवाज बनकर उभरी। गोदी मिडिया की ताकत बढ़ी जबकि सरकार के खिलाफ मुखर पत्रकारों को फजीहत का सामना करना पड़ा,कलम की स्वतंत्रता पर भारी संकट।
भ्रष्टाचार की फेहरिस्त बड़ी है,चुनावी चंदा मोदी सत्ता की नियत का बस एक नमूना है।सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदा को असैवाधानिक ठहराया है, अब प्रश्न उठता है कि क्या इस काले धन से जुड़े दानदाताओं की तह में छिपे रहस्यों की जांच की जाएगी, यदि जांच हुई तो और घोटाले जांच की जद में आयेंगे।
राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव के संकेत है। हाशिए पर चल रही कांग्रेस की ताकत बढ़ी है,जनता के बीच गांधी – नेहरू परिवार की खोई विश्वसनीयता लौटने लगी है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस क्या नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोलकर संवैधानिक अधिकारों से वंचित वर्ग को जोड़ पाएगी,फिलहाल यह सवाल बना है हुआ है। फिर भी इतना तो मनना ही पड़ेगा कि राहुल जिस तरह से पूरे आत्मविश्वास के साथ कांग्रेस की परंपरागत नीतियों पर आगे बढ़ रहे हैं उसके भारतीय राजनीति में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
( यह लेखक के अपने विचार हैं)