विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर हिंदी विश्वविद्यालय, हावड़ा के कुलपति प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि हिंदी का संबंध हमारी अस्मिता से है। हमारी अस्मिता का अर्थ भारतीय अस्मिता से है। बांग्ला का तत्सम रूप बहुत हद तक हिंदी का रूप ही है। हिंदी भाषा के विकास के इतिहास पर चर्चा करते हुए चारों अपभ्रंश शौरसेनी, प्राकृत, अर्द्धमागधी और मागधी का जिक्र जरूरी है। छः बहनों की मां एक ही है- मागधी- हिंदी, उड़िया, मैथिली, मगही, बांग्ला और असमिया। भाषा ने ही सर्वप्रथम ‘राष्ट्रीय’ अवधारणा को जन्म दिया है। भाषा से ही जातीय चेतना का निर्माण हुआ। पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण होता ने कहा कि संवैधानिक कारणों से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते हैं। परंतु हमारे लिए रोज हिंदी दिवस है। हिंदी की प्रगति में अहिंदी भाषियों की बड़ी भूमिका है। किसी भी भाषा के समृद्ध होने का आधार बौद्धिक जागरण से है। हिंदी विभाग, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष प्रो. तनुजा मजूमदार ने हिंदी को इतिहास से जोड़कर स्वामी विवेकानन्द के संदर्भ में देखा। हिंदी में सरलता है। हिंदी के साथ बंकिम और विद्यासागर का भी जिक्र किया। भाषा की शक्ति का संबंध फोर्स से नहीं बल्कि साहित्य की समृद्धि की शक्ति से है। शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ,हजारी प्रसाद द्विवेदी और क्षितिमोहन सेन के त्रिभुज को वे हिंदी के बंगाल में व्यापकत्व का आधार मानते हैं।डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि हिंदी को ज्ञान,तकनीकी, अध्ययन सामग्री और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता की भाषा बनाने की जरूरत है।हिंदी भारतीय भाषाओं के बीच एक पुल की तरह है जो अपनी स्वायत्तता के साथ तमाम भारतीय भाषाओं के साथ आगे बढ़ रही है।कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि हिंदी पूरे भारत में अपनी उदारता के कारण समादृत है।कहीं-कहीं उसे विरोध का सामना भी करना पड़ता है।पर यह विरोध जल्द मिट जाएगा।धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभाग के अध्यक्ष डॉ प्रमोद प्रसाद ने सभी आमंत्रित विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि हिंदी हमारे पहचान की भाषा है।