-अनवर हुसैन
कोलकाता 9अक्टूबर।कोलकाता के प्रतिष्ठित कॉलेज नव बालीगंज महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा ‘रवींद्र: कबीर और छायावाद प्रसंग’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें देश-विदेश से साहित्य-प्रेमियों ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.वेद रमण, महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट, मॉरीशस, प्रो.गीता दुबे, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, प्रो. अल्पना नायक, श्रीशिक्षायतन कॉलेज और प्रो.संजय जायसवाल, विद्यासागर विश्वविद्यालय उपस्थित थें। स्वागत भाषण देते हुए प्रो. अब्दुल सत्तार ने कबीर के दोहों की ख़ूब प्रशंसा की तथा छायावाद के उत्थान में रोमांटिसिज्म की भूमिका पर प्रकाश डाला। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रो. राजश्री शुक्ला ने तुलनात्मक रूप से कबीर, रवींद्रनाथ और छायावाद के बीच बौद्धिक दृष्टिकोण पर समानता की बात कही। इन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ पर संत कवियों का काफी गहरा प्रभाव था और वैश्विक मानवता के स्वर तीनों में समान रूप में विधमान है। प्रो. संजय जायसवाल ने कबीर, रवींद्रनाथ और छायावाद में समतुल्यता दिखाते हुए कहा कि कबीर, रवींद्रनाथ और छायावाद तीनों मानवता और विवेकपरकता के त्रिभुज हैं। साथ ही कबीर की आध्यात्मिकता का विकास रवींद्रनाथ और छायावाद में देखा जा सकता है। तीनों का लक्ष्य समान रूप से आत्मा के विस्तार, मानवमुक्ति के स्वर और लौकिक सम्बन्ध के सार्वभौम सत्य के रूप में जुड़ा है।
इन्होंने कहा कि कबीर, रवींद्र और छायावाद में मानवीय संवेदना और तार्किकता का स्वर प्रबलता से दिखाई देता है। प्रो.गीता दुबे ने कहा कि कबीर, रवींद्र और छायावाद तीनों प्रेम के डोर से बंधे हुए हैं तथा उनके यहां मानवता का विस्तार है।उन्होंने तीनों के बीच के संबंधों और प्रभाव का तुलनात्मक विश्लेषण किया।प्रो.अल्पना नायक ने भारतीय जागरण को कबीर, रवींद्रनाथ और छायावाद का मूल मंत्र कहा और इसके अंतर्गत सामाजिक जागरण, राजनीतिक जागरण और सांस्कृतिक जागरण पर प्रमुखता से बल दिया। प्रो.वेद रमण ने रहस्यवाद को कबीर, रवींद्रनाथ और छायावाद के बीच केंद्रित करते हुए तमाम तरह के रहस्यों का जिक्र किया तथा रवींद्रनाथ को कबीर और छायावाद की कड़ी कहा।उन्होंने रवींद्रनाथ के हंड्रेड पोयम्स ऑफ कबीर के अनुवाद की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण चर्चा की। कार्यक्रम का सफल संचालन और धन्यवाद ज्ञापन देते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. मनीषा साव ने कहा कि कबीर, रवीन्द्रनाथ और छायावाद का मूल स्वर मनुष्यता का है।