छायावाद में वैयक्तिकता के साथ राष्ट्रीय जागरण और विश्व बोध की प्रधानता हैः डॉ. शंभुनाथ

छायावाद में  वैयक्तिकता के साथ राष्ट्रीय जागरण और विश्व बोध की  प्रधानता हैः डॉ. शंभुनाथ
 कोलकाता, 26 मार्चः  महानगर की प्रतिष्ठित संस्था भारतीय भाषा परिषद की ओर से ‘पुस्तक संवाद’ श्रृंखला का आयोजन परिषद के पुस्तकालय में किया गया।इस अवसर पर पुस्तकालय के पाठकों, विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के विद्यार्थियों और युवाओं के  साथ ‘प्रसाद का आंसू और छायावाद’ विषय पर मूर्धन्य आलोचक प्रो. शम्भुनाथ जी का संवाद हुआ। प्रो. शम्भुनाथ ने कहा कि आप जहाँ बैठे हैं वहाँ 20 हजार किताबें हैं  यानी 20 हजार खिड़कियां खुली हुईं हैं। छायावाद में अनुभूति की प्रधानता है। अनुभूति की प्रधानता का अर्थ है व्यक्ति की प्रधानता। छायावाद के पहले इंडिविजुअलिटी नहीं मिली थी । मैथिलीशरण गुप्त ”  मैं  ” नहीं लिखी जाती थी। छायावाद से मैं इंडिविजुअलिटी आई।इसमें वैयक्तिकता के साथ राष्ट्रीय जागरण और विश्व बोध की  प्रधानता है।
श्रीमती विमला पोद्दार ने कहा कि हम चाहते हैं लोग पुस्तकालय में आए। इस संस्था से जुड़ने का  लाभ मिले। इससे साहित्य का सम्मान बढ़ता है। इस अवसर पर मुस्कान गिरि ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी। संचालन करते हुए आदित्य गिरि ने कहा कि महीने के शनिवार को पुस्तक पर संवाद होगी। कुछ विशेष वक्ता बुलाएंगे जाएंगे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि ‘आँसू’ में कवि ने अपनी वेदना को करुणा से जोड़ते हुए सार्वभौम सत्य और संवेदना का विषय बनाया है। प्रसाद मन की उदात्तता और व्यापकत्व में जगत का आनंद देखते हैं।कार्यक्रम में डॉ अवधेश प्रसाद सिंह, डॉ शुभ्रा उपाध्याय, सुरेश शॉ,डॉ पायल,प्रो.नवनीता दास सहित भारी संख्या में विद्यार्थी और युवा उपस्थित थे।इस अवसर पर परिषद की ओर से डॉ कुसुम खेमानी ने ओडिया साहित्यकार मिहिर साहू को सम्मानित किया।