कोलकाता, 8 जूनः भारतीय भाषा परिषद और सदीनामा ने पांच भाषाओं की भाषायी पत्रकारिता के 200 साल के इतिहास पर बुधवार को एक दिवसीय सेमिनार आयोजित किया। भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष कुसुम खेमानी, बुजुर्ग पत्रकार संतन कुमार पांडेय, प्रो. कृपाशंकर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क और छपते छपते के प्रधान संपादक विश्वंभर नेवर आदि विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर भाषा परिषद के सभागार में सेमिनार का शुभारंभ किया।
सेमिनार में वक्तव्य रखते हुए प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि हमारे देश में पत्रकारिता का इतिहास एक अंग्रेज जेम्स अगस्टस हिक्की से शुरू होता है। उसने 1780 में कोलकाता से पहला अंग्रेजी अखबार हिकी बंगाल गजट का प्रकाशन शुरू किया। 30 मई 1826 को पं युगल किशोर शुक्ल ने हिंदी का पहला अखाबर उदंत मार्तंड का प्रकाशन कोलकाता शुरू किया। उसके बाद बांग्ला, उर्दू, पंजाबी, ओडिया आदि समाचार पत्रों का प्रकाशन कोलकाता से शुरू होकर पूरे देश में फला-फूला। कृपाशंकर चौबे ने आजादी की लड़ाई से लेकर देश के आजाद होने के बाद भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के गौरवशाली इतिहास पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।
ओम प्रकाश अश्क ने कहा कि आज डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता खास कर प्रिंट मीडिया के समक्ष संकट पैदा हो गया है। अखबारों की प्रसार संख्या में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। अखबार छपकर पाठकों तक पहुंचने में कुछ समय लगता है। लेकिन डिजिटल माध्यम में त्वरित गति से 24 घंटे खबरें अपलोड हो रही है और लोगों तक पहुंच रही है। हिंदी पत्रकारिता से आम पाठकों को जोड़ने के लिए अब डिजिटल माध्यम के सहारे ही कुछ खास करने की जरूरत है।
बुजुर्ग पत्रकार संतन कुमार पांडेय ने कहा कि पत्रकारिता की साख में गिरावट आई है तो इसको बचाने क जिम्मेदारी पत्रकारों की ही है। पत्रकार हमेशा विपक्ष में बैठते हैं। लेकिन आज अधिकांश पत्रकार सत्ता के करीब और सत्ता के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। इसलिए पत्रकारिता को गोदी मीडिया भी कहा जाने लगा है। बांग्ला के वरिष पत्रकार अमल सरकार ने कहा कि पत्रकारिता स्वाधीनता से जुड़ी है। आजादी के पहले यह स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई थी। लेकिन आजादी के बाद भी यह अभिव्यक्ति और व्यक्ति स्वतंत्रता की वकालत करती है। वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल ने कोलकाता के समाचार पत्रों के संचालकों की निष्ठा पर सवाल उठाया और उनकी नीतियों की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि जिस अखबार की ओर से हिंदी पत्रकारिता पर दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया उसके पास कार्यक्रम को कवर करने के लिए अपना कोई एक रिपोर्ट भी नहीं था। यह भयावह स्थिति है। सेमिनार में हरदेवसिंह ग्रेवाल , जगमोहन सिंह गिल, रावेल पुष्प और जगमोहनसिंह खोखर ने पंजाबी पत्रकारिता के इतिहास पर प्रकाश डाला। उर्दू पत्रकारिता के इतिहास पर विस्तार से चर्चा की वरिष्ठ पत्रकार जहांगीर काजमी ने। ओड़िया भाषा की पत्रकारिता पर डॉ सौरव गुप्ता ( कोरापुट सेंट्रल यूनिवर्सिटी ,उड़ीसा) ने अपना सारगर्भित वक्तव्य रखा। बांग्ला के दूसरे वक्ता समीर गोस्वामी ने बांग्ला पत्रकारिता के इतिहास पर अपने विचार व्यक्त किए।
सेमिनार के दौरान हिंदी पुस्तक काया के वन में लेखक ( महेश कटारे ) की पुस्तक का बांग्ला अनुवाद ,भृतहरि : संसार – अरण्य ,का लोकार्पण हुआ। भारतीया भाषा परिषद के निदेशक व वागर्थ पत्रिका के संपादक डॉ. शंभुनाथ और छपते छपते के प्रधान संपाद विश्वंभर नेवर ने पुस्तक का लोकार्पण किया। पुस्तक के अनुवादक मधु कपूर, काकली घोषाल तथा सदीनामा प्रकाशन के सम्पादक जीतेन्द्र जितांशु समेत लोकार्पण समारोह में अन्य विशिष्ट व्यक्ति उपस्थित थे।
इस अवसर पर श्रोता-वक्ता सम्वाद आयोजित हुआ जिसमें लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया । धन्यवाद ज्ञापन किया मीनाक्षी सांगानेरिया ने । संयोजन ,संचालन और जनसम्पर्क किया रेणुका अस्थाना (राजस्थान) ,नवीन प्रजापति और रितिका सिंह ने ।