बैरकपुर, 2 जनवरीः युवा दलित साहित्यकार मंच द्वारा 02 जनवरी, 2022 को पुनर्मिलन कार्यक्रम, राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रसिद्ध लेखक डॉ.जयप्रकाश कर्दम, दलित लेखक संघ की अध्यक्ष अनिता भारती, चर्चित मराठी कवि दामोदर मोरे और आलोचक डॉ. बिपिन कुमार के शुभकामना संदेश के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की गई। पुनर्मिलन सत्र में पी.एन. दास कॉलेज के प्रो.अजय चौधरी ने संस्था के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान हिंदी और बांग्ला के दलित लेखकों एवं गणमान्य व्यक्तियों को उत्तरीय तथा स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी के पहले सत्र में ‘दलित साहित्य की सृजनधर्मिता और नई संभावनायें’ विषय पर परिसंवाद किया गया। विश्वभारती शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. रणवीर सुमेध भगवान ने अपने बीज वक्तव्य में दलित आंदोलन और लेखन की पूरी परंपरा का जिक्र करते हुए मराठी और हिंदी साहित्य का तुलनात्मक वर्णन किया। पश्चिम बंगाल दलित साहित्य आकदेमी के सह सभापति डॉ. आशीष हीरा ने सत्र के मुख्य अतिथि के तौर पर अपने वक्तव्य में बांग्ला दलित साहित्य की रचनाधर्मिता में पीड़ा के इतिहास का स्मरण कराते हुए सहानुभूति और स्वानुभूति पर भी दृष्टि इंगित किया। युवा आलोचक डॉ.सुकेश लोहार ने अपने वक्तव्य में दलित समाज का श्रम से रिश्ता बताते हुए श्रमजीवियों के गीत को दलित साहित्य में लाने की आवश्यकता जाहिर किया। वर्धमान विश्वविद्यालय के डॉ. शशि शर्मा ने अपने वक्तव्य से दलित साहित्य की सम्भावनाओं को वर्तमान से जोड़ा ।कूचबिहार पंचानन वर्मा विश्वविद्यालय की डॉ. रीता चौधरी ने दलित साहित्य में स्त्री के समानता को मुख्य रूप से रखा। अध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार ने कहा कि पत्र-पत्रिकाओं और आंदोलन के जरिए ही प्रबुद्धतापूर्वक आगे बढ़ने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ‘दलित साहित्य में नवोन्मेष एवं सामाजिक चिंतन’ विषय पर परिसंवाद किया गया। इस सत्र के मुख्य अतिथि वर्धमान से आगत माननीय माधवेंद्र राय तथा अध्यक्ष प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. मेरी हँसदा थीं। मुख्य वक्ता के रूप में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिलाष गोंड, महाराजा श्रीशचंद्र कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कार्तिक चौधरी, काजी नजरुल विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर प्रतिमा प्रसाद एवं मानकर कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर मक्केश्वर रजक ने अपने विचार रखे। इस सत्र का संचालन कोलकाता सिटी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर संदीप प्रसाद ने किया। माधवेंद्र जी ने कहा कि दलित आंदोलन हक और अधिकार का आंदोलन है और हाशिए पर खड़े दलितों को मुख्यधारा के लोगों को सुनना ही होगा। डॉ. कार्तिक चौधरी ने चटकल मजदूर इलाके के दलितों की स्थिति की बात की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में दलित अस्मिता का प्रयोग व्यवसायिक दोहन के लिए भी हो रहा है। दलित आंदोलन एवं अभिव्यक्ति के लिए सोशल मीडिया वर्तमान समय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रो. मक्केश्वर रजक ने पूरी दलित परंपरा का उल्लेख करते हुए दलित स्त्रियों एवं दलित पुरुषों की स्थितियों की बात की। अभिलाष कुमार गौड़ ने दलित लेखन की पूरी परंपरा को नवोन्मेष की सीढ़ी कहा। उन्होंने सहानुभूति एवं स्वानुभूति परक लेखन का उल्लेख भी किया। साहित्य से विभिन्न उदाहरण देकर दलित साहित्य के नए प्रतिमानों के बारे में भी बात की। प्रो. प्रतिमा प्रसाद ने दलित स्त्री लेखिकाओं की कहानियों को आधार बनाकर जातिप्रथा, आडंबर, आरक्षण, राजनीतिक विखराव, सरकारी-गैरसरकारी प्रतिष्ठानों में पक्षपात आदि का विश्लेषण किया। इस सत्र की अध्यक्ष डॉ. मेरी हँसदा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में दलित साहित्य और आदिवासी लोक साहित्य के संबंध सूत्रों के बारे में चर्चा की।
तीसरे सत्र में काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कवि आनंद गुप्ता थे तथा अध्यक्षता प्रो. संदीप प्रसाद ने किया। इस सत्र का संचालन डॉ. कार्तिक चौधरी ने किया। उपस्थित कवियों में प्रेम कुमार, रोहित प्रसाद पथिक, प्रियंका सहानी, विक्रम साव, शिव प्रकाश दास, सूरज पासवान, कार्तिक बासफोर, कन्हैया लाल दास, धर्मराज राम, सौरव सहानी, नीतू कुमारी, राम जीत राम ने अपनी कविताएँ पढ़ी। गीतात्मक, भावात्मक एवं बौद्धिक शैली में दलित अस्मिता, स्त्री अस्मिता, राजनीतिक व्यंग्य, सामाजिक स्थिति, संवैधानिक मूल्य, मानवीय जीवनानुभव आदि विषयों पर केंद्रित कविताओं का पाठ किया गया।