मिदनापुर/कोलकाता, 21 फरवरीः विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर ‘भारत की सामासिक संस्कृति और मातृभाषा की प्रयोजनीयता’ विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर बहुभाषी काव्यपाठ का भी आयोजन हुआ। स्वागत वक्तव्य देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का उद्देश्य है कि हम सभी मिलकर अपनी-अपनी मातृभाषा को और समृद्ध करें। हम बहुभाषी जरूर बनें लेकिन अपनी मातृभाषा को मार कर नहीं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि भाषा का परिवेश के साथ संबंध होता है। परिवेश बदलते ही कई शब्दों के अर्थ लोप हो जाते हैं। बंग भूमि पर रह कर बांग्ला भाषा सीखना सही अर्थों में मातृभाषा दिवस को सार्थक बनाना है। भारत की बहुसांस्कृतिक यात्रा में मातृभाषाएं सहयात्री की तरह है। अंग्रेजी विभाग की डॉ. जॉली दास ने कहा कि हम आधुनिक बनने के नाम पर अपनी मातृभाषा को न छोड़ें। बांग्ला विभाग के डॉ. सुजीत पाल ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पृष्ठभूमि की ओर संकेत किया और अपनी-अपनी मातृभाषा का सम्मान करने का आग्रह किया। इस अवसर पर बहुभाषी काव्यपाठ में नेहा शर्मा, टीना परवीन,सुषमा कुमारी, वैद्यनाथ चक्रवर्ती, राया सरकार, नाजिया सनवर, सुषमा कुमारी, प्रसन्ना सिंह, बेबी सोनार, राम दंडपाणि, रैनाज राई, उस्मिता गौड़ ने हिंदी, बांग्ला, नेपाली, उड़िया और संस्कृत भाषा में रचित कविताओं का पाठ किया और श्रेया सरकार ने रवींद्र संगीत प्रस्तुत की। संचालन करते हुए डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि मातृभाषा दिवस का यह अवसर दुनिया भर के लोगों की बोली जानेवाली भाषाओं के प्रति सम्मान का पर्व है। भारत की सामासिक संस्कृति का आख्यान कई मातृभाषाओं में संरक्षित एवं सुरक्षित है। बहुभाषिकता एवं बहुसांस्कृतिकता के जरिए ही मातृभाषाओं को व्यापक बनाया जा सकता है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि मातृभाषा दिवस का यह आयोजन विभिन्न भाषाओं के बीच एक पुल की तरह है।
कोलकाता के प्रतिष्ठित कॉलेज खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज के बांग्ला विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। स्वागत गीत कॉलेज की छात्रा स्वर्णाली बनर्जी ने प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण देते हुए कॉलेज की टीआईसी डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि मातृभाषा को सामाजिक प्रतिष्ठा एवं रोजगार से जोड़ने की जरूरत है तभी मातृभाषा का विकास संभव हो पाएगा। अतिथि वक्ता ऋषिकेश हलदार ने कहा कि भाषा आंदोलन में आंदोलनकारियों ने अपने प्राण गवाएं हैं उनके बलिदान की रक्षा करना हमारा दायित्व है। डॉ. प्रथमा रॉय मंडल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का अर्थ सभी भाषाओं से प्रेम और उनका सम्मान करना है। कॉलेज के प्रेसिडेंट देवाशीष मल्लिक ने कहा कि भाषा को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि भाषा ही वो माध्यम है जिससे हम लोगों से संवाद कर पाते हैं। इस अवसर पर हिंदी विभाग की शिक्षिका मधु सिंह ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन बांग्ला विभाग के प्रो. रामकृष्ण घोष ने किया। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए बांग्ला विभाग के प्रो. डॉ विष्णु सिकदर ने कहा कि मातृभाषा का प्रयोग हमें गर्व से करना चाहिए ताकि हम उस भाषा की संस्कृति और परंपरा को भी जान सकें।