मारवाड़ी सम्मेलन का भाषा साहित्य सम्मान समारोह आयोजित

मारवाड़ी सम्मेलन का भाषा साहित्य सम्मान समारोह आयोजित

राजस्थानी भाषा की सुवास को बचाने की जरूरत – शिव कुमार लोहिया

अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का राजस्थानी भाषा साहित्य सम्मान समारोह हल्दीराम बैंक्वेट, बालीगंज में राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार लोहिया की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। सुप्रसिद्ध समाजसेवी, उद्योगपति, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हरि प्रसाद कानोडिया ने साहित्य सम्मान समारोह का उद्घाटन किया। सभी अतिथियों एवं सम्मेलन के पदाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर इसकी शुरुआत हुई।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार लोहिया ने सभी का अभिनंदन और राजस्थानी भाषा दिवस की बधाई देते हुए कहा कि सम्मेलन मायड भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष राजस्थानी भाषा साहित्य सम्मान देती है। राजस्थानी भाषा में जो वीरता का वर्णन है, वह दुनिया की किसी भी अन्य साहित्य में नहीं है। इस भाषा के पीछे कला, संस्कृति, साहित्य, लोक साहित्य, लोक संस्कृति, मान्यताओं, त्योहारों, रीति-रिवाजों, गीतों, गाथाओं, किस्से-कहानियों, कहावतों, मुहावरों की विपुल संपदा है। मायड भाषा की सुवास को बचाए रखने की जरूरत है। मायड भाषा विलुप्त होने पर इसके पीछे सैकड़ों वर्षों के संस्कार-संस्कृति का भी विलोप हो जाएगा। हम भाषा को घर में बचाए और हमारे बच्चे अपनी भाषा में बात करते रहे तो भाषा बची रहेगी। सम्मेलन पुराने और नए को जोड़ने का कार्य कर रहा है। श्री लोहिया ने समाज- बंधुओं से आह्वान किया कि आप सम्मेलन के कार्यकर्मों, उद्देश्यों से जुड़े एवं अपने विचार हमें भेजें हम आपको आश्वस्त करते हैं कि उस पर विचार-विमर्श कर प्रभावी कार्य करेंगे।

समारोह के मुख्य वक्ता रतन लाल साह ने कहा कि धर्म आपको जोड़कर नहीं रख सकता हैं। बांग्लादेश इसका सबसे नवीनतम उदाहरण हमारे सामने है। बोलियाँ भाषा की श्रृंगार होती है, जिस भाषा में जितनी ज्यादा बोलियाँ वह भाषा उतनी ही सुंदर भाषा है। राजस्थानी भाषा इस मायने में बहुत समृद्ध है। अपार साहित्य संपदा राजस्थानी भाषा के पास है। भाषा किसी व्यक्ति के लिए पानी जितना ही जरूरी है। श्री साह ने लोगों से निवेदन करते हुए कहा कि आप कभी भी अपनी भाषा बोलने में हीनता महसूस ना करें।

सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हरि प्रसाद कानोडिया ने अपना सुझाव देते हुए साहित्य सम्मान से सम्मानित विद्वानों से कहा कि राजस्थानी में कहानियां भी लिखी जाए और साथ में उसका अनुवाद हिंदी व अंग्रेजी में साथ-साथ दिया जाए यह भाषा के प्रचार-प्रसार में प्रभावी कदम होगा।बाल साहित्यकार व शिक्षाविदडॉ. मदन गोपाल लढा ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि भाषा की मान्यता से ज्यादा जरूरी है की हम अपने घर, परिवार, समाज, उत्सव में इसे मान्यता दें। हम यहाँ इसे बचाकर रख पाते हैं तो यह किसी भी सरकारी मान्यता  से बड़ी बात होगी। उन्होंने राजस्थानी कविता का पाठ कर उपस्थित लोगों को आनंद से भर दिया।

राजस्थानी भाषा के साहित्यकारबंशीधर शर्मा ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि सम्मेलन का यह विशिष्ट साहित्य सम्मान पाकर अविभूत हूँ, इससे मुझे और साहित्य सर्जना की शक्ति मिली है। अपनी संस्कृति, अपनी भाषा के लिए लोगों को जगाने की आवश्यकता है। जिसके लिए सम्मेलन बड़ी कर्मठता से लगा हुआ है। उन्होंने अपनी कुछ स्वरचित राजस्थानी  कविताएँ  सुनाईं।