महिला दिवस पर भारतीय भाषा परिषद में बांग्ला– हिंदी की साहित्य संध्या

महिला दिवस पर भारतीय भाषा परिषद में बांग्ला– हिंदी की साहित्य संध्या
कोलकाता, 8 मार्च:शिवरात्रि के दिन महिला दिवस एक नया अर्थ लेकर आया है, जो है शिव का अर्धनारीश्वर का रूप। स्त्री और पुरुष का इस संसार में बराबर का सम्मान और अधिकार होने चाहिए, जबकि आज भी समाज में स्त्रियां पुरुषसत्ता द्वारा एक न एक तरह से उत्पीड़न की शिकार हैं। आज भारतीय भाषा परिषद और भाषा संसद द्वारा आयोजित बांग्ला और हिंदी के साहित्यकारों के एक सम्मिलित कार्यक्रम में लेखिकाओं ने इस पर चर्चा की कि स्त्री रचनाकारों को कितनी चुनौतियों के बीच अपना लेखन करना पड़ता है।
आरंभ में परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि 1857 में अमेरिका में शुरू हुआ स्त्रियों का आंदोलन आज स्त्रियों के समानाधिकार का विश्वव्यापी आंदोलन बन गया है। परिषद में बांग्ला और हिंदी लेखिकाओं का यह सम्मिलन एक नया संदेश दे रहा है। भाषा संसद की ओर से बांग्ला लेखक और स्त्री पत्रिका के वरिष्ठ संपादक अरूप आचार्य को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर भाषा संसद की ओर से वितस्ता घोषाल ने कहा कि स्त्री आंदोलन के इतिहास में साहित्य की एक बड़ी भूमिका रही है।
कथाकार शर्मिला बोहरा जालान ने कहा कि मैंने आंतरिक दबाव से लिखना शुरू किया। मेरे लेखन में परिवार की उपस्थिति है, पर वे समस्याएं भी प्रमुख रूप से हैं जिनका सामना सिर्फ स्त्रियों को करना पड़ता है। स्कॉटिश चर्च कॉलेज की प्रो. गीता दूबे ने कहा स्त्रीवादी होना कोई गुनाह नहीं है। हम पितृसत्ता पर सवाल उठाते हैं, तभी हमने अतीत की कई जंजीरें तोड़ी हैं। स्त्री जब भी बात करती है, पूरे समाज का मंगल सोचकर बात करती है। कवि और संस्कृति कर्मी डा. मधु सिंह ने कहा कि लड़कियों को घर का काम करना पड़ता है और लड़के बाहर का काम करते हैं। यह बंटवारा स्त्रियों की शिक्षा और प्रगति को प्रभावित करता है। पुरुष भी घर के काम करें, तभी लैंगिक न्याय होगा।
परिचर्चा में महुआ चौधरी, तन्वी हाल्दार और श्रीपर्णा बंद्योपाध्याय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम को सफल बनाने में विवेक चट्टोपाध्याय और रायना दत्त ने विशेष सहयोग दिया। प्रो. संजय जायसवाल ने धन्यवाद देते हुए कहा कि स्त्री विमर्श इसलिए है स्त्री और पुरुष असमानता का अंत हो।