लापता लेडीज के विशेष शो में उमड़ी दर्शकों की भीड़

लापता लेडीज के विशेष शो में उमड़ी दर्शकों की भीड़

अनवर हुसैन

कोलकाता, 7 मार्चः  गुरुवार को सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीच्यूट में निर्देशक किरण राव के निर्देशन में बनी फिल्म लापता लेडीज का स्पेशल स्क्रिनिंग (विशेष शो) का आयोजन किया गया था जिसमें दर्शकों की भारी भीड़ जुटी। इंस्टीच्यूट का मुख्य थियेटर हॉल दर्शकों से खचाखच भरा था। आम दर्शकों के साथ लेखक, कवि, नाट्यकार, साहित्यकार, फिल्म समीक्षक और समाज के विशिष्ट व्यक्ति भी शामिल थे। इस तरह की एक खूबसूरत फिल्म बनाने के लिए सभी ने किरण राव की प्रशंसा की और लेखक विपल्व गोस्वामी को धन्यवाद दिया। इस विशेष मौके पर फिल्म की निर्देशक किरण राव और लेखक विपल्व गोस्वामी समेत फिल्म के कुछ कलाकार भी उपस्थित थे। लगभग सवा दो घंटे की इस सार्थक फिल्म देखने के दौरान हॉल बीच-बीच में दर्शकों की तालियों से गूंच उठता था। इसी से फिल्म के दमदार होने का अंदाजा लगाया जा सकता है।

फिल्म के समापन के बाद निर्देशक किरण राव ने दर्शकों से खुल कर बातचीत की। उन्होंने किसी बड़े स्टार को लिए बिना इस तरह की एक सार्थक फिल्म बनाने में आने वाली चुनौतियों पर अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि वह खुद एक मध्यवर्गीय परिवार में पली बड़ी हैं और जिंदगी की कड़वी सच्चाई से वाकिफ हैं। समाज में महिलाएं जिस तरह की समस्याओं का सामना करती हैं उसको वह यथार्थ रूप में अपनी फिल्म लापता लेडीज में दर्शाने की कोशिश की हैं। रवि किशन को छोड़कर फिल्म के अधिकांश कलाकार नए हैं। नए चेहरों के लेकर फिल्म बनाना चुनौती भरा काम है लेकिन उन्हें कहानी में वास्तविकता को दर्शाना था। कहानी के पात्र के अनुसार ही कलाकारों का चयन किया गया और सभी ने बेहतर काम किया। फिल्म में आमिर खान खुद पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाने के इच्छुक थे। लेकिन बाद में इसके लिए रवि किशन को उपयुक्त समझा गया। निर्मता के तौर पर उन्हें आमिर खान का हर संभव सहयोग मिला लेकिन निर्देशक के तौर पर किरण राव ने पूरी स्वतंत्रता और लगन से फिल्म को पूरा किया। किरण राव ने कहा कि दर्शकों ने फिल्म को पसंद किया इससे बढ़कर उनके लिए और कोई खुशी नहीं हो सकती। उन्होंने एक अच्छी कहानी देने के लिए विपल्व गोस्वामी की प्रशंसा की और कहा कि  वह आगे भी इस तरह की अच्छी कहानियों पर सार्थक फिल्में बनाना चहेंगी।

दर्शकों के एक सवाल के जवाब में  फिल्म के लेखक विपल्व गोस्वामी ने अपना अनुभाव साझा करते हुए कहा कि बहुत पहले अपने सफर में एक बार उनकी नजर एक नव विवाहिता लड़की पर पड़ी जो लंबा घूंघट ओढ़े हुई थी।घूंघट में आस-पास के अच्छे-बुरे लोगों से भी वह अनजान थी। यह एक दृश्य देखने के बाद उन्हें वर्षों पहले इसे केंद्र कर एक कहानी लिखने की इच्छा हुई जो अंततः पूरी।

फिल्म की कहानी पर दो शब्द कहना यहां अप्रासंगिक नहीं होगा। फिल्म की शुरूआत दीपक नामक एक लड़के के विवाह समारोह से शुरू होती है। विवाह के बाद वह शादी के जोड़ा में अपनी पत्नी फूल के साथ ट्रेन के साधारण कंपार्टमेंट में सवार होकर घर लौट रहा है। कंपार्टमेंट में उसके अतिरिरिक्त और भी दो नव विवाहित जोड़ा रहते हैं। शादी के लाल जोड़ा में सभी की दुल्हनें लंबे घूंघट में रहती हैं। दीपक स्टेशन पर उतरता है तो स्वभाविक रूप से घूंघट ताने दुल्हन भी उसके पीछे हो लेती है। लेकिन घर पहुंचने पर दूल्हा- दुल्हन का रीति रिवाज से गाजे-बाजे के साथ स्वागत होता है तो दीपक अपनी पत्नी को देखकर भौंचक रह जाता है। उसे मानो अचानक सांप सूंघ जाता है क्योंकि वह अपनी फूल को छोड़कर दूसरे की दुल्हन लेकर घर चला आय़ा है। जिस दूसरी दुल्हन को वह लेकर आया है वह अपना नाम पुष्पा रानी बताती है। लेकिन वास्तव में यह उसका असली नाम नहीं है। पुष्पा अपना असली परिचय छुपाकर दीपक के घर में रहती है और दूसरी ओर दीपक अपनी पत्नी फूल की तलाश में भटकता रहता है। वह पुलिस थाने से लेकर विधायक तक के दरबार में पहुंता है और इस तरह समाज के कई ज्वलंत मुद्दों को उठाते हुए कहानी दिलचल्प तरीके से आगे बढ़ती है। पुष्पा क्यों अपना असली परिचय छुपाकर दीपक के घर में रहती है यह अपने आप में एक रहस्य है जो फिल्म के अंतिम दौर में परत दर परत खुलता है। बॉलीवुड के फिल्मों से गांव-ग्राम की कहानियां तो लगभग गायब ही हो गई है। लेकिन किरण राव ने इस कमी को पूरा किया और एक अच्छी कहानी पर सार्थक फिल्म बनाया है जो स्वस्थ मनोरंज के साथ सामाजिक संदेश भी देती है।