योगेश भारद्वाज: बसाना की गीत मंडलियों से बॉलीवुड की ऊंचाइयों तक

योगेश भारद्वाज: बसाना की गीत मंडलियों से बॉलीवुड की ऊंचाइयों तक

डॉ तबस्सुम जहां

(लेखिका प्रतिष्ठित कहानीकार के साथ मशहूर आलोचक और समीक्षक भी हैं।)
छिपकली फेम बॉलीवुड एक्टर योगेश भारद्वाज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। इनका जन्म रोहतक (हरियाणा) के एक छोटे से गांव ‘बसाना’ में हुआ। बचपन से ही इनकी रुचि गीत-संगीत में रही। इनका बचपन गांव में होने वाले कीर्तन और जागरण में भजन गाते और स्कूल में बाल सभा में नाटक करते हुए बीता। छोटी-सी उम्र में ही अपने गीत-संगीत और अभिनय से यह गाँवों में प्रसिद्ध हो गए। इतना ही नहीं, थोड़ा बड़े होने पर यह फ़िल्मों की धुनों पर खुद के गीत लिखने लगे। उस समय इन्होंने अपनी एक छोटी-सी नाटक मंडली भी बनाई। बता दें कि योगेश भारद्वाज को कविता और गीत लिखने का शौक है और इस शौक ने उन्हें एक बहुत बड़ी जागरण पार्टी के साथ जुड़ने का मौक़ा दिलाया। इस जागरण पार्टी से वह चार साल जुड़े रहे जहाँ इनके भजनो की बहुत धूम रही। योगेश बताते हैं कि “कभी यह नहीं सोचा था कि बड़ा होकर कला ही मेरा व्यवसाय भी बनेगी। बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद रोहतक शहर के जाट कॉलेज में पढ़ने गया तो युवा महोत्सव के बारे में पता चला। एक नाटक करते हुए सिनेमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेता जयदीप अहलावत से मिलना हुआ। उन्होंने मेरी प्रतिभा को देखते हुए कहा कि तुम इस क्षेत्र में अच्छा कर सकते हो। उनसे मैं इतना ज़्यादा प्रभावित हुआ कि मैंने अभिनय को अपनी जिंदगी बनाने का फ़ैसला कर लिया।” साल 2012 में योगेश रोहतक स्थित फ़िल्म संस्थान में अभिनय की पढ़ाई करने चले गए। वहाँ उन्हें समझ आया कि उनकी भूख ‘प्रसिद्धि’ की नहीं बल्कि ‘सिद्धि’ की है। वहाँ से पासआउट होने के बाद उन्होंने तीन हरियाणवी फिल्मों में काम करने के साथ कुछ म्यूजिक एल्बम में निर्देशन भी किया। बहुत जल्द उन्हें यह लगने लगा कि उनके काम करने का क्षेत्र छोटा पड़ता जा रहा है। उनके अनुसार “संसाधन और पैसे दोनों ही कम पड़ते जा रहे थे। मुझे कुछ नया सीखने और बड़ा काम करने के लिए ऐसी जगह जाना था जहां बड़े स्तर पर सिनेमा बनता हो।दिसंबर 2017 के अंत में मैं सपनों के शहर मुंबई आ गया। यहां आने के बाद मुंबई के प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर श्री जोगी मलंग सर के साथ काम करने का मौक़ा मिला।” मुंबई आने के बाद योगेश भारद्वाज को काम के नए- नए अवसर प्राप्त हुए। आगे चलकर इन्हे बॉलीवुड की कुछ बेहतरीन फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा मिला। 2019 में योगेश भारद्वाज की एक के बाद एक तीन बॉलीवुड फिल्में रिलीज़ हुई- ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’, ‘S P चौहान’, ‘सैटेलाइट शंकर’। इन फिल्मों के साथ ही योगेश बॉलीवुड जगत में पहचान बना चुके हैं। फ़िल्म ‘छिपकली’और ‘कॉलेज कांड’ वेब सीरीज़ की सफलता ने योगेश भारद्वाज को सिनेमा जगत में एक मँझे हुए कलाकार के रूप में स्थापित कर दिया है।
आइए मिलते हैं हर दिल अज़ीज़ योगेश भारद्वाज से आलोचक समीक्षक डॉ तबस्सुम जहां के साथ।
डॉ तबस्सुम जहां- छिपकली फ़िल्म मे काम करने का आपको कैसे अवसर प्राप्त हुआ?
योगेश भारद्वाज- मेरे पसंदीदा अभिनेता और गुरु रहे सुप्रसिद्ध बॉलीवुड एक्टर डायरेक्टर यशपाल शर्मा के साथ उनकी पहली निर्देशित फ़िल्म “दादा लखमी” में काम कर रहा था तो एक दिन उन्होंने कहा- ‘तुझे किसी बड़ी फ़िल्म में बड़ा रोल मिलना चाहिए।’ पर कोविड काल आया तो सब रुक गया। ऐसे में मेरी लेखनी ने मुझको बचाए रखा। कविताएं और कहानियां लिखता रहा। कोविड के बाद वापस मुंबई पहुंचा। एक दिन यशपाल सर का फोन आया और उन्होंने मिलने बुलाया। बोले कि तुझे बड़ी फ़िल्म में बड़ा रोल मिल रहा है। इस तरह छिपकली बॉलीवुड में मेरी पहली लीड रोल वाली फ़िल्म बनी।”
डॉ तबस्सुम जहां- छिपकली फ़िल्म में अपने कैरेक्टर के विषय मे कुछ बताएं। कैसे फ़िल्म अन्य फिल्मों से हट कर है।
योगेश भारद्वाज- छिपकली में मेरा किरदार रुद्राक्ष नाम का एक प्राइवेट डिटेक्टिव का है जो एक लेखक की पत्नी और बेटे की मौत के रहस्य का पता लगाने के लिए उसके घर आता है। छिपकली बाक़ी फ़िल्मों से अलग इसलिए है क्योंकि अभी तक हम सस्पेंस थ्रिलर तो बहुत सुन और देख चुके, पर यह पहली फिलोसिफिकल थ्रिलर है जो एक मर्डर मिस्ट्री सुलझाने के साथ ना जाने कितने सामाजिक मुद्दों और विज्ञान की बात करती है।
डॉ तबस्सुम जहां – आजकल रियलटी और सामाजिक मुद्दों पर फिल्मे अधिक बन रही हैं एक अदाकार के रूप में इस प्रकार की फिल्मों से खुद को कैसे जोड़ कर देखते हैं।
योगेश भारद्वाज- मुझे व्यक्तिगत और अभिनेता के तौर पर ऐसी फ़िल्में ज़्यादा पसंद आती हैं जो भरपूर मनोरंजन के साथ समाज की किसी छुपी हुई और ज़रूरी सच्चाई से भी दर्शकों को अवगत कराती हो। जिनके नायक आम जनमानस के जीवन की बात करते हों।
डॉ तबस्सुम जहां- मुंबई से जुड़े अपने संघर्ष के विषय मे कुछ बताएं?
योगेश भारद्वाज- मुंबई आने के बाद मुझे ज़्यादा संघर्ष करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। यहां आते ही मुझे काम मिलना शुरू हो गया था। मेरा संघर्ष बाहर की बजाए आंतरिक ज़्यादा रहा है कि मुझे बाहर के काम के साथ-साथ अपनी कला के माध्यम से अपनी बात भी ज़रूर कहनी है जो एक कलाकार होने के नाते मैं समाज को कहना चाहता हूं।
डॉ तबस्सुम जहां- भविष्य में कौन सा ऐसा किरदार है जो आप करना चाहते हैं और क्यों?
योगेश भारद्वाज- अभी के समय में बहुत विविधता के साथ काम हो रहा है। मैं सब तरह के क़िरदार करना चाहता हूं। पर मैं वो क़िरदार करना ज़्यादा पसंद करूंगा जिनके होने और ना होने से कहानी पर पूरा प्रभाव पड़े।
डॉ तबस्सुम जहां- दादा लखमी फ़िल्म हरियाणा सिनेमा जगत के लिए मील का पत्थर साबित हुई है क्या आप मानते हैं कि यह फ़िल्म हरियाणा सिनेमा के परिदृश्य को बदल देगी?
योगेश भारद्वाज- निःसंदेह दादा लखमी अब तक की हरियाणा की सबसे बड़ी और मजबूत फ़िल्म है। इस फ़िल्म ने हरियाणवी संस्कृति को देश के हर प्रदेश और विश्व पटल पर दर्शाया है। यह सिर्फ़ फ़िल्म नहीं हरियाणवी सिनेमा की धरोहर है।