भारतीय भाषा परिषद में आठ भारतीय भाषाओं के लेखक पुरस्कृत हुए

भारतीय भाषा परिषद में आठ भारतीय भाषाओं के लेखक पुरस्कृत हुए
कोलकाता, 20 अप्रैल। भारतीय भाषाओं के मूर्धन्य लेखकों का सम्मान भारतीय साहित्य की इंद्रधनुषी विविधता का सम्मान है। केरल, कर्नाटक, पंजाब, दिल्ली, भोपाल आदि जगहों से आए ये साहित्यकार उच्च मानवीय मूल्यों के रक्षक हैं। कोलकाता का यह गौरवशाली पुरस्कार समारोह उनके मूल्यवान साहित्यिक कार्यों के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए है। भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने अपने स्वागत भाषण में ये बातें कहीं।
आज के समारोह में वरिष्ठ साहित्यकारों जसबीर भुल्लर (पंजाबी), एम. मुकुंदन (मलयालम), राधावल्लभ त्रिपाठी (संस्कृत) और भगवानदास मोरवाल (हिंदी) को कर्तृत्व समग्र सम्मान से पुरस्कृत किया गया। इनमें से प्रत्येक को एक लाख की धनराशि के साथ मानचित्र और मानपत्र प्रदान किया गया। युवा पुरस्कार से जसिंता केरकेट्टा (हिंदी), संदीप शिवाजीराव जगदाले (मराठी), अरिफ राजा (कन्नड़) तथा गुंजन श्री (मैथिली) को सम्मानित किया गया। इन्हें इक्यावन हजार की धनराशि तथा मानचित्र और मानपत्र प्रदान किया गया। सम्मान समारोह के दूसरे सत्र में आयोजित संवाद में अपना वक्तव्य रखते हुए प्रसिद्ध मलयालम कथाकार एम. मुकुंदन ने कहा कि आज ए आई सपना नहीं हो सकता, सपने तो मनुष्य देखते हैं। मैं अपना सपना मलयालम में देखता हूँ न कि किसी और भाषा में।
भगवानदास मोरवाल ने कहा कि आज लेखक की सबसे बड़ी चुनौती अभिव्यक्ति की चुनौती है। राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने मानवीय संवेदनशीलात पर बात की। पंजाबी के लेखक जसबीर भुल्लर ने कहा कि मासूमियत के सिक्के कागज के भी क्यों न हो वे चल जाते हैं। मासूमियत को बचाए रखना लेखकों का कर्तव्य है। कन्नड़ के युवा लेखक ने काव्यत्मक न्याय पर अपनी बात रखी।
जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि हाशिए पर पड़े लोगों की चिंता आज बड़ी चिंता है। लेखकों को हाशिए के लोगों की चितां करते रहने की जरूरत है।  युवा लेखक गुंजन श्री ने स्वाभाविक मानवीय रचनात्मकता को संभाले रखने पर जोड़ दिया।  मराठी के युवा लेखक शिवाजीराव जगदाले ने कहा कि किसान के नाखून में बसी मिट्टी की खुश्बू को महसूस करने की जरूरत है।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि यह सम्मान कृति साहित्यकारों के अलावा भारतीय साहित्य की विविधता में अखंडता का सम्मान है। साहित्य ही वह ताकत है, जो मनुष्य और मनुष्य के इतिहास को अपराजेय बनाती है।
पुरस्कार समारोह के प्रथम सत्र का संचालन सुशील कान्ति ने किया एवं संवाद सत्र का संचालन संजय जायसवाल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दिया परिषद के वित्त सचिव घनश्याम सुगला ने।