हिंदी मेला में ‘ स्वतंत्रता के 75 सालः साहित्य, संस्कृति और मीडिया’ पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं के विचार
कोलकाता 31 दिसंबर: स्वतंत्रता के 75वीं वर्षगाठ ने यह अवसर दिया है कि हम व्यापक आत्म निरीक्षण करें। 1947 से पहले के सौ सालों के स्वाधीनता संग्राम ने इस देश की जनता को कई महान स्वप्न दिए हैं। जो दुस्वप्न में बदलते दिखाई दे रहे हैं। स्वतंत्रता तभी अर्थवान है जब देश अहिंसा,भाईचारा और समानता की ओर बढ़े। स्वाधीनता के मूल्यों पर अधिक से अधिक चर्चा होनी चाहिए क्योंकि आर्थिक विकास के साथ मानवीय स्वतंत्रता भी जरूरी है। ये बातें आज भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के द्वारा आयोजित हिंदी मेले में देश के विभिन्न कोनों से आए विद्वानों ने कही। कटक के रेवेंशा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रो. अंजुमन आरा ने कहा स्वतंत्रता का अर्थ फैशन नहीं है। नयी पीढ़ी में साहित्य का प्रचार करना जरूरी है क्योंकि साहित्य जीना सीखाता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा कि ई-मीडिया ने हिंदी में अशब्दों की भरमार कर दी है और वह मिथ्या प्रचार का माध्यम बन गया है। हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो दामोदर मिश्र ने कहा कि मातृभाषा और मातृभूमि को महत्व दिए बिना स्वतंत्रता को सही अर्थ नहीं मिल सकता। वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता की रक्षा वहीं कर सकता है जो आत्म सम्मान और स्भाविमान के साथ जीना चाहता है।
दूसरे सत्र में चर्चित इतिहासकार हितेंद्र पटेल ने कहा कि भय के बीच रहकर स्वतंत्रता का स्वप्न नहीं देखा जा सकता। जरूरत है कि हम साहस के साथ वह सब भी कहें जो हम बोल नहीं पा रहे हैं। सुप्रसिद्ध कवि प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ इसमें निहित है कि हम उसका उपयोग कैसे कर रहे हैं। गांधी के लिए अपशब्दों का प्रयोग करना स्वतंत्रता की बड़ी विडंबना है। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक शंभुनाथ ने कहा कि भय वहीं प्रबल होता है जहां महान स्वप्नों की कमी हो। सौ वर्षों के स्वाधीनता संग्राम में शहीदों ने जिन आदर्शों और स्वप्न्नों के लिए अपना बलिदान किया उन्हें पूरा करना बाकि है। इस अवसर पर शुभ्रा उपाध्याय की पुस्तक’समानांतर चलती एक लड़की’ एवं मधु सिंह की पुस्तक’हिंदी साहित्य और सिनेमा एक अन्तर्यात्रा’का लोकार्पण किया गया।दोनों सत्रों का संचालन डॉ. गीता दूबे और डॉ. गुलनाज बेगम ने किया और धन्यवाद ज्ञापन संस्कृति कर्मी विनोद यादव ने दिया।
वाद-विवाद वर्ग ‘अ’ का शिखर सम्मान सम्यक सुंदरम, बिड़ला हाई स्कूल, प्रथम स्थान संयुक्त रूप से रितिका कुमारी साव, सेंट ल्युक्स डे स्कूल और नंदनी कुमारी, केंद्रीय विद्यालय, मुजफ्फरपुर को और वर्ग ‘क’ का शिखर सम्मान आशुतोष कुमार राउत, सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज, प्रथम स्थान शिखा झा, सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज और द्वितीय स्थान रेशमी राय, बेथुन कॉलेज को मिला। हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता वर्ग ‘अ’ का शिखर सम्मान कृतिका पंडित, पुष्पा साव, प्रिया साव, गौरीपुर हिंदी हाई स्कूल और प्रथम पुरस्कार रुमेला भौमिक, श्रेष्ठ उपाध्याय, आकांछा घोड़ावत, बिड़ला हाई स्कूल को तथा वर्ग ‘क’ का शिखर सम्मान अमन कुमार पांडेय, अजित सिंह, राजेश राय, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, प्रथम स्थान स्नेहा साव, नेहा साव, खुशी मिश्रा, साव, स्नेहा साव, सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज और तृतीय स्थान संयुक्त रूप से सर्वेश मिश्र, विश्वजीत कलता, कुमारी सुनीता, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और किशन कुमारी मांझी, राधा कुमारी ठाकुर, अंकिता कुमारी, स्वतंत्र प्रतिभागी को मिला।