”डॉ. शंभुनाथ कोलकाता के सांस्कृतिक प्राणपुरुष हैं”

”डॉ. शंभुनाथ कोलकाता के सांस्कृतिक प्राणपुरुष हैं”
75 वर्षपूर्ति के अवसर पर भारतीय भाषा परिषद में अभूतपूर्व आयोजन
21 मई, कोलकाताः शंभुनाथ एक प्रसिद्ध शिक्षाविद और साहित्यकार ही नहीं हैं, बल्कि कोलकाता के हिंदी जगत के सांस्कृतिक प्राणपुरुष हैं। उन्होंने देश-विदेश में हिंदी के प्रसार के लिए विपुल कार्य किया है। भक्ति आंदोलन और भारतीय नवजागरण पर उनके काम हिंदी आलोचना के क्षितिज का विस्तार करते हैं। कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं प्रसिद्ध लेखक डॉ. शम्भुनाथ की 75वीं वर्षपूर्ति के अवसर पर आज ये बातें देश भर से आए विद्वानों ने कहीं। इसका आयोजन कलकत्ता विश्वविद्यालय के उनके विद्यार्थियों और साहित्यप्रेमियों ने भारतीय भाषा परिषद के सभागार में किया था। इस अवसर पर उनकी कविताओं पर कोलाज और उनकी एक कहानी का नाट्य रूपांतरण भी प्रस्तुत हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. शंभुनाथ की जीवन यात्रा पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘सृजन यात्रा’ से हुई। भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने उनको सम्मानित करते हुए कहा कि शंभुनाथ जी ने परिषद की कई परियोजनाओं को राष्ट्रीय स्तर प्रदान किया है, जिनमें एक ‘हिंदी साहित्य ज्ञानकोश’ का निर्माण है। प्रो. राजश्री शुक्ला ने कहा कि शंभुनाथ एक निरंतर सृजनशील और सक्रिय व्यक्तित्व बने रहें, यह हम सबकी कामना है।
सम्मान समारोह में कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए डॉ शम्भुनाथ ने कहा कि विद्यार्थियों और नौजवानों की सभागार में बड़ी उपस्थिति हिंदी भाषा और साहित्य के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत है। उन्होंने यह भी कहा कि आज के परिदृश्य में ‘झूठ जिधर है, उधर शक्ति’। साहित्य हजारों साल से सत्य का रक्षक और मानवता की आवाज है। यह उनका हथियार है, जो हार रहे हैं लेकिन हार मानने को तैयार नहीं हैं। मैं अपने शिष्यों और देश भर से आए विद्वानों का आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे इतना सम्मान दिया। वाणी प्रकाशन की ओर से अरुण कुमार माहेश्वरी और अदिति माहेश्वरी ने दिल्ली से आकर उनका सम्मान किया।
इस अवसर पर भक्ति आंदोलन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. विजयबहादुर सिंह ने कहा कि भक्ति आंदोलन को समझने के लिए गांधी की धार्मिक दृष्टि को समझना बहुत जरूरी है। इस भक्ति का सूफियों के प्रेम से गहरा संबंध रहा है। रांची विश्वविद्यालय के डॉ. रविभूषण ने कहा कि भारत के विभिन्न प्रदेशों में भक्ति आंदोलन विविध तरह से आया और उसका मुख्य संदेश ईश्वर के समक्ष सबको समान समझना था।  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि शंभुनाथ ने ‘सनातन में सर्जनात्मकता’ की बात कह कर भक्ति साहित्य को देखने का एक नया परिप्रेक्ष्य दिया है। आज के धार्मिक शोर में भक्ति का संदेश खो गया है। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के इतिहासविद प्रो. हितेन्द्र पटेल ने कहा, रवीन्द्रनाथ और गांधी दोनों को भक्ति आंदोलन ने प्रभावित किया था और उनकी दृष्टि ने भक्ति आंदोलन के मूल्यांकन को काफी प्रभावित किया है।
‘भक्ति आंदोलन और वर्तमान समय’ पर विचार के दूसरे सत्र में अंबेदकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. वैभव सिंह ने कहा, भक्ति आंदोलन के दौर में जड़ धार्मिक व्यवस्था की आलोचना थी और आज भी धर्म के संबंध में कई बातें कही जा रही हैं। इन दोनों में फर्क है। आज धर्म पर बाजार और राजनीति का असर बहुत ज्यादा है। दिल्ली से आए कवि और फिल्मकार देवी प्रसाद मिश्र ने कहा, भक्ति आंदोलन से प्रेरणा लेकर एक ऐसी सभ्यता का निर्माण करना होगा, जो मानवीय हो।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी तुलसी के रामराज्य से प्रभावित थे, तो वे कबीर के प्रेम, श्रमचेतना और अहिंसा के विचारों से भी प्रभावित थे। उन्होंने ईश्वर को अपने जीवन की प्रेरणा बना ली थी। डॉ. अवधेश प्रधान ने कहा कि भक्ति साहित्य की प्रेरणा से ही आज मनुष्य जाति सुख और शांति की ओर बढ़ सकती है। श्री रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि एक प्रोफेसर के रूप में शंभुनाथ का विद्यार्थियों के बौद्धिक निर्माण में एक बड़ी भूमिका है। श्री मृत्युंजय ने कहा कि शंभुनाथ ने हिंदी आलोचना को एक नई भूमि प्रदान की है। इस अवसर पर भाषाविद डॉ. अवधेश प्रसाद सिंह सहित शिक्षा जगत के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
इस आयोजन के मुख्य आह्वायक प्रो. संजय जायसवाल द्वारा डॉ. शंभुनाथ की कृतियों पर संपादित ग्रंथ ‘सभ्यताओं का संवाद’ और रामनिवास द्विवेदी द्वारा संपादित सचित्र पुस्तक ‘एक भारतीय बुद्धिजीवी के सपने’ का लोकार्पण हुआ। प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि दिन भर सभागार में डॉ. शंभुनाथ के विद्यार्थियों और साहित्यप्रेमियों की व्यापक उपस्थिति और इतने विद्वानों का आगमन उनकी राष्ट्रीय लोकप्रियता का प्रमाण है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में श्रीप्रकाश गुप्ता, रमाशंकर सिंह, इबरार खान, मधु सिंह, पूजा गोंड, सूर्यदेव राय, राजेश सिंह, रूपेश यादव, अपराजिता, सपना खरवार, राज घोष, सुशील सिंह, आदित्य तिवारी, विशाल बैठा, आदित्य साव और चंदन भगत ने नाटक तथा स्नेहा चौधरी, अंकिता कुमारी, शाहीन परवीन, रिया सिंह, इशरत जहां, संजना, अंशुल, कुसुम भगत, अदिति दुबे, कंचन भगत, मधु साव, अदिति, ज्योति चौरसिया, सुषमा कुमारी, मनीषा गुप्ता ने कविता कोलाज किया। इस सम्मान समारोह में विश्वम्भर नेवर, डॉ. शुभ्रा उपाध्याय, अजय राय, डॉ मंजूरानी सिंह, अरुण माहेश्वरी, अदिति माहेश्वरी, शंकर सान्याल, कृष्ण श्रीवास्तव, रविशंकर सिंह, ऋषि भूषण चौबे, जयराम पासवान, यतीश कुमार, प्रियांगु पाण्डेय, मानव जायसवाल सहित सैकड़ों की संख्या में साहित्यप्रेमी, सर के पूर्व विद्यार्थीगण मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ संजय जायसवाल, डॉ गीता दुबे, डॉ श्रद्धांजलि सिंह, नागेंद्र पंडित ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राजश्री शुक्ला, डॉ प्रीति सिंघी, राजेश कुमार साव ने दिया।