“सीएसआईआर” आईएचबीटी के मार्गदर्शन में “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर” कोंडागांव में विकसित की गई है यह प्रजाति
– अनवर हुसैन
बस्तर अंचल में विगत तीन दशकों से हर्बल तथा जैविक खेती में लगातार तरह-तरह के नए प्रयोगों के लिए जाने जाने वाली संस्था “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर” ने “विश्व मधुमेह दिवस” के अवसर पर मधुमेह यानी कि डायबिटीज के करोड़ों मरीजों के लिए एक नायाब उपहार पेश किया है। यह कहना गलत तो नहीं होगा कि इन्होंने करोड़ों मधुमेह के रोगियों की जीवन में मिठास घोलने की पहल की है। आज इस समूह के संस्थान “एमडी बोटैनिकल्स” ने स्टीविया जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में “मीठी तुलसी” भी कहा जाता है की जैविक पद्धति से उगाई गई पत्तियों तथा स्टीविया का पाउडर डायबिटीज के मरीजों तथा मोटापा से परेशान लोगों के लिए पूर्णतः पर्यावरण हितैषी जैविक पैकेजिंग में पेश किया है। यह स्टीविया बस्तर के खेतों में ही उगाये गए हैं तथा इसकी पैकिंग भी बस्तर की मां दंतेश्वरी हर्बल महिला समूहों के द्वारा किया गया है।
उल्लेखनीय है कि स्टीविया की पत्तियां शक्कर से 25 से 30 गुना ज्यादा मीठी होती है , और आश्चर्यजनक रूप से यह लगभग जीरो कैलोरी होती हैं। अर्थात डायबिटीज का मरीज भी इसकी पत्तियों से तैयार, इन उत्पादों का सीधा उपयोग शक्कर के बदले चाय कॉफी पेय पदार्थों अथवा खीर, हलवा एवं अन्य मिठाइयों में करकेअपने जीवन में भरपूर मिठास घोल सकता है। स्टीविया की पत्तियों का भी उपयोग का तरीका भी बहुत आसान है। एक कप चाय के लिए इस स्टीविया की बस आधी पत्ती अथवा आधी चुटकी इसकी पत्तियों का पाउडर ही पर्याप्त है।
वैसे बहुत कम लोगों को यह पता है कि मीठी तुलसी यानी स्टीविया की पत्तियां न केवल शक्कर का सुरक्षित और “जीरो कैलोरी” वाला विकल्प है बल्कि मनुष्यों, विशेषकर मधुमेह के रोगी के शरीर में शक्कर की मात्रा को नियंत्रित करके, लगातार उचित स्तर पर बनाए रखने में भी यह बहुत मदद करती है। यानी मिठास शक्कर की तरह और उससे बेहतर होने के बावजूद यह शक्कर के सभी दोषों से लगभग मुक्त है, तथा डायबिटीज के रोगी के लिए स्टीविया की ये पत्तियां न केवल निरापद मिठास देती हैं, बल्कि उनके शरीर में शक्कर की मात्रा को नियंत्रित करने वाली औषधि की तरह भी कार्य करती है। मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने डॉ राजाराम त्रिपाठी के मार्गदर्शन में लगभग 16 साल पहले छत्तीसगढ़ में सबसे पहले स्टीविया की खेती का प्रयास शुरू किया। तत्कालीन उपलब्ध कई प्रजातियों पर उन्होंने कार्य किया और इसकी छत्तीसगढ़ की मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त प्रजाति तैयार करने में वह लगातार लगे रहे। वर्तमान में भारत सरकार के शीर्ष शोध संस्थान सीएसआईआर (आईएचबीटी ) के वैज्ञानिक के सहयोग से विकसित की गई स्टीविया की नई प्रजाति एमडीएसटी-16 का विकास तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रही है। इसमें आईएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिक डॉक्टर संजय कुमार तथा डॉ प्रोबीर पाल का विशेष योगदान रहा है। इस प्रजाति की विशेषता है कि इसकी पत्तियां शक्कर से 30 गुना मीठी होने के बावजूद पूरी तरह से बिना कड़वाहट वाली हैं। यह प्रजाति बहुत कम सिंचाई में तथा काफी गर्म क्षेत्रों में भी बड़े आराम से चल जाती है। उत्पादन भी ज्यादा देती है, तथा इसमें मिठास भी ज्यादा है।अन्य उपलब्ध सभी प्रजातियों की तुलना में उत्पादन भी ज्यादा देती है तथा फसल के रोगों और बीमारियों, कीड़े मकोड़ों का भी इस पर प्रभाव बहुत कम पड़ता है। और एक बड़ी खासियत इस प्रजाति की यह भी है कि, जहां स्टीविया की अन्य प्रजातियों के पौधे बड़े होने पर तेज हवा चलने पर टूट कर जमीन पर गिर जाते हैं, इससे कई बार किसानों को काफी नुकसान होता है वहीं पर यह नई प्रजाति चाहे कितनी भी तेज हवा चले टूटती और जमीन पर गिरती नहीं है।
इसी नई प्रजाति की स्टीविया की पत्तियों का प्रयोग कर “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” ने बिना शक्कर के ही मीठी तथा डायबिटीज सहित दसों असाध्य बीमारियों को नियंत्रण करने में मदद करने वाली अनूठी “हर्बल चाय” भी बनाई है जो कि देश विदेश में डायबिटीज और मोटापाग्रस्त लोगों में ही नहीं बल्कि सभी वर्गों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। उल्लेखनीय है कि बस्तर के आदिवासी परिवारों के साथ मिलकर यह समूह सैकड़ों एकड़ में अन्य जड़ी बूटियों के साथ विशुद्ध जैविक पद्धति से स्टीविया/मीठी तुलसीकी खेती कर रहा है। साथ ही स्टीविया की पत्तियों से शक्कर बनाने की इकाई भी यहां बस्तर में ही स्थापित की जा रही है।