नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान करता है बॉलीवुड इनटरनेशनल फिल्म फेस्टिवलः यशपाल शर्मा

नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान करता है बॉलीवुड इनटरनेशनल फिल्म फेस्टिवलः यशपाल शर्मा

हिंदी सिनेमा तथा रंगमंच के बेहतरीन और लाजवाब एक्टर यशपाल शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लगान फ़िल्म में अपने ज़बरदस्त अभिनय का लोहा मनवाने वाले यशपाल शर्मा ने आगे भी फ़िल्म यहाँ, अनवर, गुनाह, दम, वेलकम टू सज्जनपुर, गैंग्स ऑफ वासेपुर 2, गंगाजल, राउडी राठौड़, सिंह इज़ किंग सरीखी फिल्मों में अपने अभिनय का बेहतर प्रदर्शन किया वहीं दादा लख्मीचंद जैसी क्लासिकल संगीतमय फ़िल्म बना कर डायरेक्शन के क्षेत्र में भी बुलन्दी के सभी झंडे गाड़ दिए। दादा लख्मी फ़िल्म की सफलता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फ़िल्म में अभी तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ कर अनेक नेशनल व इंटरनेशनल अवार्ड अपने नाम कर लिए हैं। यशपाल शर्मा न केवल बेहतरीन एक्टर डायरेक्टर हैं बल्कि इसके साथ ही बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल मंच के आइकॉन फेस भी हैं जिसकी संथापक उनकी पत्नी प्रतिभा शर्मा हैं।

अभी तक बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिबल के दो सत्र हो चुके हैं तथा तथा तीसरा सत्र आगामी नवम्बर में होने जा रहा है। पिछले बरस की तरह इस बार भी फीचर फिल्म, डाक्यूमेंट्री (लांग, शॉर्ट), लॉन्ग शॉर्ट फिल्म, शॉर्ट फिल्म, मोबाइल फ़िल्म, एनिमेशंस फ़िल्म, एल जी बी टी क्यू फ़िल्म, वेब सीरीज़, म्यूज़िक वीडियो, फीचर फिल्म स्क्रिप्ट( स्क्रीनप्ले), शॉर्ट फिल्म स्क्रिप्ट (स्क्रीनप्ले) इसमें शामिल होंगी। बेहतरीन चयनित फ़िल्म को नवंबर में होने वाले तीन दिवसीय फ़िल्म फेस्टिवल में दिखाया जाएगा और पुरुस्कृत किया जाएगा।

लगातार दो सालों से इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल सफलता की बुलंदियों को छू रहा है। इसकी संस्थापक प्रतिभा शर्मा ने बताया कि पहले ही वर्ष में लगभग 200 फिल्मों को ज्यूरी द्वारा सम्मिलित किया गया। दूसरे वर्ष तक आते आते इस फेस्टिवल ने देश विदेश के सिनेमा प्रेमियों में अपनी एक पहचान बना ली। यही वजह है कि दूसरे बरस भी भारी तादाद के साथ फिल्मों के आवेदन आए। यशपाल शर्मा और प्रतिभा शर्मा द्वारा चलाए जा रहे बिफ्फ कि सराहना देश विदेश में हो रही है। इन दोनों का ही मक़सद सिनेमा जगत से जुड़ी नई उभरती प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना है तथा सही मार्गदर्शन प्रदान करना है। यह अभी तक का शायद अकेला ऐसा मंच है जिसका उद्देश्य नए लोगों को अवसर प्रदान करना है। बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल आज अपनी ऊंचाइयों को छू रहा है। इसी मंच से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर मशहूर आलोचक, फिल्म समीक्षक व कहानीकार डॉ. तबस्सुम जहां ने यशपाल शर्मा से लंबी बातचीत की। यहां प्रस्तुत है बातचीत का महत्वपूर्ण अंश।

डॉ तबस्सुम जहां-  सर आज जो इतने नेशनल इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल हो रहे हैं ऐसे में आप बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल को कैसे उनसे अलग करके देखते हैं?

यशपाल शर्मा- मैंने लोकल और नेशनल-इंटरनेशनल बहुत सारे फ़िल्म फेस्टिवल अटैंड किए हैं और मैं इस बात को अच्छे से जानता हूँ कि इक्का दुक्का को छोड़कर बहुत लोग अपने दोस्तों को अवार्ड दे देते हैं या अपने दोस्तों को बुला लेते हैं। इसका मतलब है कि सही कंपटीशन या सही टैलेंट को अवार्ड नहीं मिल पाता है। जो वहाँ आ गया उनको ही अवार्ड दे दिया जाता है। ऐसे बड़े-बड़े फेस्टिवल में भी होते है जो ठीक नहीं है। मेरा मानना है कि फेस्टिवल में जो नहीं आ पा रहा है और यदि उसको अवार्ड दिया जाए या उसके नाम को अनाउंस किया जाए तो यह उस व्यक्ति की गरिमा है कि यक़ीनन उस व्यक्ति ने अच्छा काम किया होगा।  हमारे फेस्टिवल की पारदर्शिता और इसकी ज्यूरी की निष्पक्षता का पता इस बात से चल जाता है कि इसमें एक बंगलादेश तथा एक पेरिस के टैलेंटेड व्यक्ति शामिल है। वे बहुत ही रेपुटेडिट डायरेक्टर और एक्टर हैं जिनको ज्यूरी में शामिल किया गया है। इसके अलावा इसमें तीन लोग नेशनल अवार्ड विनर हैं जो हमारे ज्यूरी टीम में शामिल हैं। इसमें ज्यूरी द्वारा जो डिसाइड किया जाता है ठीक वही रिज़ल्ट हम पेश करते हैं।हम उसमें किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं करते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा जो फाउंडर च्वॉइस अवार्ड होता है बस एक ही अवार्ड हम अपनी तरफ़ से देते हैं। इस तऱीके से बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल अन्य सभी फेस्टिवल से अलग हो जाता है। बेशक धीरे-धीरे ही सही पर यह उत्तरोत्तर अपनी पहचान बना रहा है और आने वाले दिनों में बड़े फेस्टिवल में यह शुमार होगा, मुझे ऐसी उम्मीद है। शुरु में थोड़ा उतार चढ़ाव होता है। लोग यक़ीन नहीं करते हैं कि इतने तो फेस्टिवल चल रहे हैं तो इस फेस्टिवल की क्या ज़रूरत है या फिर साथ में काम करने वाले थोड़ा भरोसा तोड़ देते हैं । लेकिन मैं उन सबको भरोसा दिलाता हूँ कि आने वाले दिनों में बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ‘बेस्ट ऑफ द वन’ फेस्टिवल होगा यह मेरा आपसे वादा है और मेरी पत्नी प्रतिभा का भी क्योंकि यह प्रतिभा की ही देन है। मैं तो केवल साथ मे खड़ा हूँ। मेरा मानना है कि इसमें रेपुटेटिड या सिलेक्टिड फिल्में जो अच्छी होंगी वही दिखाई जाएंगी।यही मेरा मकसद है।

डॉ. तबस्सुम जहां-  सर बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल का मुख्य उद्देश्य क्या है और इसे बनाने के पीछे क्या मक़सद है?

यशपाल शर्मा-  आपके इस प्रश्न का उत्तर मैंने अभी दिया है लेकिन इसमें मैं एक चीज़ और जोड़ना चाहूंगा कि  मक़सद और उद्देश्य यह है कि जो लोग अच्छे टैलेंटेड हैं, अच्छे कलाकार हैं अच्छे डायरेक्टर व एक्टर हैं  वो लोग कई बार इनसिक्योर असुरक्षित महसूस करते हैं कि पता नहीं इतनी बड़ी-बड़ी फिल्में आएंगी पता नहीं हमारा नम्बर पड़ेगा या नहीं पड़ेगा, पर मैं उनको भरोसा दिलाता हूँ कि अगर उनकी फ़िल्म में दम है या उनकी एक्टिंग में दम है तो बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल उनको ज़रूर सिलेक्ट करेगा और उनको सम्मानित करेगा व उनको अवार्ड देगा। यह मेरा आपसे वादा है क्योंकि टेलेंट की जीत होनी चाहिए। नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना और उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना है ही बॉलीवुड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का मुख्य उद्देश्य है। कई बार मैंने भी ठोकरें खाई हैं इसलिए मैं इसको महसूस कर सकता हूँ कि जो बेस्ट एक्टर होता है उसको अवार्ड नहीं मिल पाता है और किसी अन्य को मिल जाता है या उनके किसी जान पहचान वाले को जो कि एक बहुत बड़ी दुविधा या ट्रेजिडी है। अतः इसका मकसद नई प्रतिभाओं को मौक़ा देना भी है।

डॉ तबस्सुम जहां-  अक्सर इस तरह के फेस्टिवल में आक्षेप लगते हैं कि उनकी फिल्मों के चयन में भेदभाव होता है ऐसे में बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ने किस प्रकार अपनी छवि साफ सुथरी बनाई हुई है या इन सब मामलों में यह किस प्रकार बाक़ीयों से अलग है?

यशपाल शर्मा-  नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने और उन्हें आगे बढ़ने का मौका देने के उद्देश्य से कि बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल बाक़ीयों से अलग है और इस प्रकार इसने अपनी साफ़ सुथरी छवि बनाई है।

डॉ. तबस्सुम जहां-  सर, यह अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल है तो क्या इसमें अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों के प्रदर्शन की वजह से या भारतीय फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय फलक देने का प्रयास की वजह से ऐसा है। आप इसका मूल उद्देश्य क्या स्वीकारते हैं। भारतीय सिनेमा अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचे या अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा भारतीय लोगों तक पहुंचे। मुख्य मक़सद क्या है।

 

यशपाल शर्मा-  इसमें इंडियन फिल्में और विदेशी फिल्में दोनों शामिल हैं चाहे वह शॉर्ट फ़िल्म हों चाहे फ़ीचर फ़िल्म हों, चाहे डॉक्यूमेंट्रीज़ हों या वेबसीरीज़ हों या बाक़ी हों तो इसलिए इसमें जो विदेशी अच्छा सिनेमा है वो हम को देखने को मिलता है। और जो हमारा अच्छा सिनेमा है वो विदेशियों को देखने को मिलता हैं। पिछले फेस्टिवल में मुझे अभी तक याद है कितनी सारी विदेशी फिल्में आई थीं जिनको देखना अपने आप में कमाल का अनुभव था। हमको एक अच्छा दर्शक भी होना है क्योंकि सिनेमा देख कर हम बहुत कुछ सीखते हैं। तो हमारे फेस्टिवल में एक मेला जैसा लगा है दो साल। और बक़ायदा लोगों ने ख़ूब देखा है सिनेमा और तारीफ़ भी की है। सैंकड़ों मैसेज भी आए हैं। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है हमारा और यही मक़सद है कि विदेशी सिनेमा भारतीयों तक पहुँचे और भारतीय सिनेमा विदेशियों तक पहुँचे बिफ्फ का यह एक बहुत बड़ा उद्देश्य है।

डॉ. तबस्सुम जहां-  आपकी स्वयं इतनी व्यस्तताएं रहती हैं। आप ख़ुद फिल्मों से जुड़े हैं अभिनय तथा निर्देशन के क्षेत्र में। फिर इन्हीं लोगों से संबंधित मंच बनाना यानी आप स्वयं संघर्ष के दौर से ग़ुज़रे हैं आपने फ़िल्म जगत से जुड़े लोगों का संघर्ष भी देखा है तो आप क्या मानते है कि आज के दौर में इस तरह के फेस्टिवल से किस प्रकार भारतीय सिनेमा को फायदा हो रहा है।

यशपाल शर्मा-  किसी भी काम को करने के लिए डेडिकेशन तो चाहिए, चाहे वह फिज़ीकली डेडिकेशन आप अटेंड करके करें या मेंटली आप सोच कर घर पर करें। सोच के आधार पर मैं अपना पूरा डेडिकेशन दिखाता हूँ लेकिन फिज़ीकली देखा जाए तो इसे प्रतिभा हैंडिल करती है मैं पूरा श्रेय प्रतिभा को देना चाहता हूँ जो बहुत ही डेडिकेशन के साथ इस फेस्टिवल को संभाले हुए है और बिफ्फ की पूरी टीम है उसमें जितने भी लोग हैं सब मिलकर जो कार्य कर रहे हैं मैं पूरी बिफ्फ टीम में सबको बधाई देना चाहता हूँ कि पूरी डेडिकेशन के साथ जो लगी हुई है, काम कर रही है और इससे निःसंदेह पूरे सिनेमा को फ़ायदा ही होगा। यह फ़ायदा कौन कितना मानता है यह उसकी बात नहीं है यह  फ़ायदा हमें पता है कि हम कितना सीख रहे हैं और सिखा रहे हैं और जो लोग इसको देख कर सीख रहे हैं और जो इससे फ़ायदा उठा रहे हैं, अच्छा विदेशी सिनेमा, अच्छा एंटरटेनमेंट सिनेमा, सिलेक्टिड फिल्में देखना कोई छोटी बात नहीं है उसको सराहना। इसका बहुत कमाल का रिस्पॉन्स भी आया है। तो मैं पूरी बिफ्फ की टीम को एकजुटता के साथ चलने के लिए बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ।

डॉ. तबस्सुम जहां-  आज बड़ी तादाद में फ़िल्म फेस्टिवल हो रहे हैं तो ऐसी स्थिति में आपको क्या लगता है कि इन फेस्टिवल का भी कोई मानकीकरण होना चाहिए। यानी एक शहर में कितना फेस्टिवल होना चाहिए या एक बड़े महानगर में कितना होना चाहिए। या जहाँ भी इस प्रकार का फेस्टिवल होता है वहाँ उसे स्वीकार्यता भी दी जाए और प्रोत्साहन भी दिया जाए।

यशपाल शर्मा-  मैं मानता हूँ कि आजकल बहुत सारे फेस्टिवल हो रहे हैं लेकिन मैंने जितने भी फेस्टिवल देखें हैं 90% फेस्टिवल उनकी मैनेजमेंट में गड़बड़ी, उनका एक अच्छा सिनेमा दिखाने में गड़बड़ी, उनका अपने दोस्तों का सिनेमा दिखाने की गड़बड़ी यानी वह केवल अपने कुछ लोगों का सिनेमा दिखाते हैं जिन्हें वह प्रमोट करना चाहते हैं। यह लोकल जगह पर एक प्रकार से अच्छी बात हो सकती है लेकिन जब हम इन वजहों से अच्छा सिनेमा देखने से चूक जाते हैं तो अच्छी बात नहीं है। जब कोई फ़िल्म चल रही है किसी फेस्टिवल के अंदर और वह लोगों को बोरिंग लगे अच्छी न लगे, उसका मानक सही न हो यानी उसकी डिग्निटी सही न हो, फ़िल्म की क्वालिटी अच्छी न हो तो असल में हम अपने दर्शकों को तोड़ रहे होते हैं और उनको जोड़ नहीं रहे होते हैं। केवल कुछ लोगों को खुश करने के लिए दिखा रहे होते हैं। हमारे बिफ्फ में ऐसा बिल्कुल नहीं होगा  पिछले सत्र में बहुत लोग हमारे खिलाफ़ हो गए थे कि हमारी फ़िल्म क्यों नहीं दिखाई। वह फिल्में ज्यूरी ने सिलेक्ट नहीं की थीं इसलिए नहीं दिखाई। हमें इस बात का कोई ग़म नहीं है हम अपनी क्वालिटी के तौर पर अपना फेस्टिवल आगे बढ़ाते रहेंगे और आगे चलते रहेंगे।

डॉ. तबस्सुम जहां-  सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वो लोग आपके फेस्टिवल तक पहुंच कैसे बनाए जो एकदम नए हैं। जो नहीं जानते कि वहाँ तक कैसे पहुँचा जाए। या जिनके पास कोई तकनीकी सोर्स नहीं है उन तक किसी फेस्टिवल की कोई सूचना ही नहीं पहुँचती। उन को सामने लाने के लिए बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के द्वारा किस प्रकार के प्रयास हो रहे हैं?

यशपाल शर्मा-  हम अपनी पब्लिसिटी करने की कोशिश कर रहे हैं कि लोगों को पता चले। मैं इसको 100% मानता हूँ कि जितनी पब्लिसिटी हो रही है वो 20% भी नहीं है। इसको बहुत आगे तक जाने की ज़रुरत है ताकि इंटरनेशनल  पटल पर भी लोगों को पता चले कि ऐसा फेस्टिवल हो रहा है जो कि शायद ऐसा नहीं हो पा रहा है, पता नहीं चल रहा है लोगों को वो मेरी एक तकलीफ़ है। इसको जल्द से जल्द सुधारना होगा और सुधारेंगे भी क्योंकि अपने छोटे से इलाके में, दोस्तों के सर्कल में, फेसबुक या इंस्ट्राग्राम पर उतने लोगों को पता चलना काफ़ी नहीं है क्योंकि एक इंटरनेशनल रीच भी होना चाहिए जिसके लिए हमें जल्दी कुछ करना चाहिए और हम करेंगे ‘वी आर ट्राईंग ऑवर बेस्ट’ तो वो करने की कोशिश कर रहे है और करेंगे। सिर्फ़ थोड़े से तबकों को पता चले उससे हमारा मक़सद हल नहीं होता है तो कौन सा तरीक़ा अपनाना होगा उसके बारे में मंथन जारी है और जल्द ही इससे हम पार पा लेंगे। ताकि पूरी दुनिया मे इसकी पब्लिसिटी हो और मैसेज जाए कि ‘हाँ आप फ़िल्म देख सकते हैं क्योंकि लोगों को कुछ पता नहीं है। ‘बट वी आर ट्राईंग ऑवर बेस्ट’ कि सबको पता चले।