पुस्तक मेले में संस्कृति नाट्य मंच की ओर से स्वच्छता पर नुक्कड़ नाटक

पुस्तक मेले में संस्कृति नाट्य मंच की ओर से स्वच्छता पर नुक्कड़ नाटक

कृत्रिम मेधा पर बहसः रोबोट सभ्यता के लिए उपलब्धि या समस्या

कोलकाता 30 जनवरीःकोलकाता की प्रसिद्ध संस्था सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से गणतंत्र दिवस के अवसर पर कोलकाता पुस्तक मेले में स्वच्छता पर केंद्रित नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया।संस्कृति नाट्य मंच की ओर से इस प्रस्तुति का मुख्य संदेश स्वच्छता को समावेशिकता से जोड़ना है।सभी को मिलकर इसे मानव धर्म का सूत्र बनाना है।हमें स्वच्छता को आडंबर का नहीं आचरण का हिस्सा बनाना होगा।इस नाटक में डॉ इबरार खान,डॉ मधु सिंह,विशाल कुमार साव,राजेश सिंह, कोमल साव,सुशील सिंह, टीना परवीन,आशुतोष राऊत,सपना खरवार, नंदिनी साव,आदित्य तिवारी, आदित्य साव,संजय जायसवाल ने अभिनय किया।नाट्य प्रस्तुति में लिली शाह,सूर्यदेव राय,चंदन भगत, रूपेश कुमार यादव,ज्योति चौरसिया ने विशेष सहयोग दिया।इस अवसर पर शंभुनाथ, श्रीरामनिवास द्विवेदी, हितेंद्र पटेल, मंजु श्रीवास्तव,उमा डगमान, डॉ गीता दूबे,दीक्षा गुप्ता,अभिषेक साव,पूजा गुप्ता,डॉ अनीता राय,पूजा गौड़,मिथिलेश मिश्रा, डॉ सुमिता गुप्ता,शगुफ्ता इस्तखार, कंचन भगत,सुषमा कुमारी, विनोद यादव,संजय दास सहित सैकड़ों की संख्या में दर्शक मौजूद थे।

दूसरी ओर पुस्तक मेला के प्रेस कार्नर में वाणी प्रकाशन और भारतीय भाषा परिषद के लोकार्पण समारोह में कई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जिनमें शंभुनाथ  की ’इतिहास में अफवाह’, कुसुम खेमानी की ’मारवाड़ी राजबाड़ी’, सुनील कुमार शर्मा की  ’आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ तथा ’चैटजीपीटी’ प्रमुख थीं। इस अवसर पर ’कृत्रिम मेधा, समाज और साहित्य’ पर एक परिचर्चा आयोजित थी। इसमें अतिथियों का स्वागत करते हुए अदिति माहेश्वरी ने कहा कि 61वें वर्ष में वाणी प्रकाशन ग्रुप समय की मांग और समाज के बदलाव को पुस्तकों में दर्ज कर रहा है। बोई मेला में इस वर्ष ‘वाणी बिजनेस’ उपक्रम के तहत सुनील कुमार शर्मा की दो पुस्तकें ‘चैट जीपीटी’ और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ का लोकार्पण सुखद है। भारत में पहली पंक्ति के आलोचक और पब्लिक इंटेलेक्चुअल डॉ. शम्भुनाथ की नई किताब ‘इतिहास में अफ़वाह’ को प्रकाशित करना गर्व का विषय है। वरिष्ठ लेखिका कुसुम खेमानी के उपन्यास का दूसरा संस्करण ‘मारवाड़ी राजबाड़ी’ की लोकप्रियता रेखांकित करता है। ये सभी पुस्तकें प्रश्न करने, उत्तर ढूंढने और संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से प्रकाशित की गई हैं।
शंभुनाथ ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि कृत्रिम मेधा कितनी सभ्यता की उपलब्धि साबित होगी और कितना यह बेरोजगारी बढ़ाने वाला कारपोरेट अणु बम है, यह अभी स्पष्ट होना है। जो भी हो मेधारोबोट मनुष्य का विकल्प नहीं हो सकते। वे एंकरिंग कर सकते हैं, उद्योगों का प्रबंधन कर सकते हैं पर मनुष्य की तरह स्वप्न नहीं देख सकते! कई बार मनुष्य ऐसे भी निर्माण कर देता है जो उसके लिए विध्वंसकारी होता है, जैसे शिव ने भस्मासुर को बनाया था। लेखक और संस्कृति कर्मी मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि आर्टिफीसियल इंटेलीजेंसी एक व्यवसायिक उपकरण है। यह ऐसा काम कर सकता है, जो दोहराव से पूरा हो जाता है। यह रचनात्मकता का विकल्प नहीं है। इसलिए रचनात्मकता पर कोई संकट नहीं है। मनुष्य के रचनात्मकता से ही एआई लगातार समृद्ध होगी। प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि श्रम का आनंद और नियंत्रण की आकांक्षा 18वीं शताब्दी से ही विज्ञान और आधुनिकता के साथ मनुष्य के भीतर आ गई। इसके परिणाम के रूप में आया है कृत्रिम मेधा। समाज कृत्रिम मेधा और शारीरिक श्रम दोनों के बीच में किसको स्वीकार करेगा, यह समाज तय करेगा। हमको इन दोनों प्रश्नों पर विचार करना होगा।कवि और तकनीकविद सुनील कुमार शर्मा ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग जरूरत के हिसाब से  होता है और यह औद्योगिक विकास में यह एक बड़ी क्रांति लाएगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग मानव क्षमताओं का विस्तार करते हुए मानव कल्याण और सभ्यता के विकास के लिए होना चाहिए। इसलिए आवश्यक है कि एआई का विकास जिम्मेदारी के साथ नैतिक निहितार्थ के साथ संरेखित करना होगा। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि एआई को लेकर सबसे बड़ी चिंता है कि समाज के आखिरी पंक्ति पर खड़े लोगों के हित को ध्यान में रखा जाए। एआई का इस्तेमाल अपनी मौलिकता को विस्थापित करने के लिए नहीं बल्कि अपनी मौलिकता को विस्तार देने के लिए होना चाहिए। इस अवसर पर रामनिवास द्विवेदी,घनश्याम सुगला,अभिज्ञात, मंजू श्रीवास्तव, उदय भान दुबे, संजय दास, डॉ. संजय राय, उत्तम कुमार,विकास जायसवाल, पूजा सिंह, रामाशीष साव,रेखा श्रीवास्तव सहित कोलकाता के सैकड़ों साहित्यप्रेमी और संस्कृतिप्रेमी मौजूद थे।