विश्व मंच पर हिंदी को स्थापित करने के लिए वैश्विक हिंदी संस्थाओं के संगठित प्रयासों की आवश्यकता: प्रो. आशा शुक्ला, पूर्व कुलपति

विश्व मंच पर हिंदी को स्थापित करने के लिए वैश्विक हिंदी संस्थाओं के संगठित प्रयासों की आवश्यकता: प्रो. आशा शुक्ला, पूर्व कुलपति
विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी – विश्व मंच पर हिंदी: संस्थागत एवं व्यक्तिगत प्रयास का आयोजन आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन, भारत
सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका, ऑस्ट्रेलिया,
मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया
भोपाल। हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित करने के लिए शुरुआत हमें अपने घर से करनी होगी. हिंदी भाषा का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय फलक पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मुद्दा बने इसी पर पर हमें एकजुट होकर कार्य करने की जरुरत है. अपनी निज भाषा के बगैर कोई राष्ट्र समृद्ध नहीं हो सकता. भाषा के समग्र विकास पर हमें सदैव चिंतन करना चाहिए.  प्रौद्योगिकी का विकास अपनी निज भाषा से ही संभव है. भाषा संस्कारों को विकसित करती है. हिंदी वैश्विक स्तर पर विकसित हो इसके लिए विश्व मंच इकट्ठे होने की जरुरत है. हिंदी लोगों के आत्मीयता के संपर्क की भाषा है.  उक्त बातें डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा आशा पारस का पीस एंड हार्मनी फाउंडेशन, भारत, सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका, ऑस्ट्रेलिया एवं मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में ‘विश्व हिंदी दिवस’ के अवसर पर ‘विश्व मंच पर हिंदी : व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास’ विषय आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर अध्यक्ष कही.
त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय त्रिपुरा एवं पूर्व महासचिव, हिंदी सचिवालय, मारीशस से मुख्य अतिथि के रूप में जुड़े प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने कहा कि किसी समाज को अपनी ही भाषा से वंचित करना यह दुर्भाग्य पूर्ण है. भाषा संस्कृति का सहारा होती है. नई शिक्षा नीति ने हमें अपनी भाषाई आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है. विश्व मंच पर स्थापित होने के लिए अपनी भाषा को समृद्ध की जरुरत है. हमें हिंदी को चिंतन एवं व्यवहारिकता में लाना होगा. हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का चिंतन-मंथन निरंतर किया जा रहा है.  हिंदी समाज कैसे आगे बढ़े तथा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो इसकी पूरी कोशिश नीति में किया गया. भारत की कई हिंदी सेवी संस्थाएं महात्मा गाँधी  के हिंदी चिंतन को अपने पाठ्यक्रमों में निहित कर समाज को विकसित करने का प्रयास कर रही हैं.
वक्ता के रूप बोलती हुए पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता भाषा संकाय, केरल प्रो. एस. तंकमणि अम्मा ने कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी समृद्ध हो रही है यहाँ पर त्रिसूत्रीय स्तर पर तीन भाषाएँ विद्यार्थियों को सिखाई जाती है. राष्ट्रीय भाषा के रूप में सभी विद्यार्थी पढ़ते हैं. इसी की बदौलत भरत के विभिन्न हिस्सों में उनको हिन्दी भाषा को बोलने समझने और पढ़ने में कठिनाई नहीं होती है. पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में भाषाएँ चिंतन का विषय है. वैविध्यपूर्ण देश में पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने एवं मानव के न्याय संगत विकास के आधार विश्व स्तर पर हिंदी को संकल्पित किया जा सकता है.
वक्ता के रूप बोलते हुए मंत्री संचालक, छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, रायपुर छत्तीसगढ़ के डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि भाषा के विकास से आशय मन तथा आत्मा के सर्वांगीण विकास से है. मातृभाषा मनुष्य को विकसित करती है. हिंदी भाषा तथा अपनी मातृभाषा को समृद्ध करने पर जोर दिया गया है. विश्व मंच पर हिंदी के संवर्धन से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे.
उद्बोधन में वक्ता के रूप में बोलते हुए महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. सुनील कुमार सुमन ने कहा कि हिंदी भाषा के विद्यार्थियों को भारतीय भाषा को सीखने की जरुरत है. भारतीय लोक भाषाओं के अनुकरण से ही हम हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित कर सकते हैं.  अपनी मातृभाषा के गौरव प्राप्ति के लिए हमें प्रयास करना होगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा का मुद्दा बहुत प्रभावी है.
कार्यक्रम का प्रस्तावना वक्तव्य और संचालन सृजन आस्ट्रेलिया ई पत्रिका एवं आई.जे. एच. ई. आर. के प्रधान संपादक डॉ. शैलेश ने करते हुए वैश्विक स्तर पर हिन्दी भाषियों की संख्या से जुड़े आँकड़े तथा मुद्दों को रखा।तथा धन्यवाद ज्ञापन द एशियन थिंकर जर्नल के प्रधान संपादक डॉ. रामशंकर ने किया। तकनीकी संयोजन संस्था के मैनेजर लव चावडीकर ने किया। इस अवसर पर देश- विदेश के हिंदी के नामचीन एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे जिनमें श्री ब्रसील नागॉड वितान श्रीलंका, अलीना आर्मेनिया आदि उपस्थित रहे।