इबराड ने की जागरूकता फैलाने की पहल
अनवर हुसैन
कोलकाता 31 अक्टूबरः जिस तरह से संक्रमित रोगों का दुष्प्रभाव बढ़ रहा है यह समस्त मानव जाति के लिए चिंता का विषय है। पारिस्थितिकी तंत्र को बचाए बिना संक्रमित रोगों से निजात पाना असंभव है। कोलकाता स्थित इंडिया इंस्टीच्यूट आफ बायो सोशल रिसर्च एंड डेवलपमेंट(इबराड) के चेयरमैन डॉ. एस. बी. राय ने इस मुद्दे पर खास बातचीत में कहा कि कोरोना काल के बाद अलग-अलग रूपों में संक्रमित रोगों का खतरा बढते जा रहा है। अभी देखा जा रहा है कि लोगों को साधारण सर्दी जुकाम होने पर उनका स्वास्थ्य कुछ ज्यादा ही बिगड़ जा रहा है। सर्दी जुकाम में कोई भी दवा असरदार नहीं हो रही है और रोगी दो तीन सप्ताह तक कष्ट भुगतता रहता है। यह पारिस्थितिकी तंत्र ( Ecosystem) बिगड़ने का दुष्परिणाम है। व्यापक जागरूकता फैला कर अगर पारिस्थितिकी तंत्र को बचाया नहीं गया तो पूरी मानव जाति के लिए संकट पैदा हो जाएगा और लोग संक्रमित रोगों की चपेट में अने से नहीं बच सकते। जल, जंगल, पशु-पक्षी, पाल्तु जानवरों और मवेशियों के साथ मानव का अटूट संबंध है। हम सिर्फ अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर सुरक्षित नहीं रह सकते। पेड़-पौधे, जीव जंतु और पाल्तु जानवरों के साथ हमें एक स्वच्छ परिवेश का निमार्ण करना होगा जिसमें सभी का स्वास्थ्य और अस्तित्व सुरक्षित हो सके। इस दिशा में इबराड शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाने का भरपूर प्रयास कर रहा है। पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित सभी हितधारकों और विशेषज्ञों को भी अभियान में सम्मिलित किया जाएगा।
पाठकों की जानकारी के लिए यहां यह बताना जरूरी है कि आदमी और जानवरों को समान रूप से अपनी चपेट में लेने वाला जूनोटिक एक संक्रमित रोग है। जब हम ज़ूनोटिक रोगों, मानव व्यवहार और पशुपालक संस्कृति के बारे में बात करते हैं तो हमें मनुष्यों और जानवरों के बीच संबंधों और इसके पीछे की भावनाओं को समझना होगा।
विभिन्न प्रबंधन प्रथाओं और पर्यावरणीय परिस्थितियां अपना कर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक और छोटे धारक पशुधन रखने की प्रणालियों में ज़ूनोज़ के जोखिम को कम किया जा सकता है। हालांकि कुछ व्यवसायों में ज़ूनोज़ से संक्रमित होने का जोखिम अधिक होता है। रेबीज, तपेदिक, एवियन इन्फ्लूएंजा और ब्रुसेलोसिस परंपरागत काम से जुड़ी आम ज़ूनोटिक बीमारियां थीं। इसमें काम करने वाले संक्रमित व्यक्ति की मौत का खतरा भी बना रहता है। यह स्पष्ट रूप से ऐसा मामला है जहां रोग संक्रमित जानवरों या संक्रमित पशु सामग्री के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। विभिन्न पशुधन रखने की प्रणालियों और समग्र रूप से जनता में ज़ूनोज़ का जोखिम घटना या या बढ़ना इस बात पर निर्भर है कि हम कहां तक इसके बारे में जागरूक और सतर्क हैं।