डॉ. राजाराम त्रिपाठी को मिला उद्यानिकी में देश का शीर्ष सम्मान

डॉ. राजाराम त्रिपाठी को मिला उद्यानिकी में देश का शीर्ष सम्मान

कृषि-उद्यानिकी का देश का शीर्ष सम्मान “चौधरी गंगाशरण त्यागी मेमोरियल ‘बेस्ट फार्मर अवार्ड इन हार्टीकल्चर’ -2023″‘ छत्तीसगढ़ बस्तर के डॉ राजाराम त्रिपाठी को प्रदान किया गया। यह पुरस्कार गुलाबी नगरी जयपुर में आयोजित “इंडियन हॉर्टिकल्चर सम्मिट एंड इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस” कार्यक्रम में सोसाइटी फॉर हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट, इंडियन कौंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च ICAR, राजस्थान एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय के राणाप्रताप सभागार में संपन्न भव्य समारोह में 3-फरवरी को एसकेएन कृषि विश्वविद्यालय कुलपति डॉक्टर बलराज सिंह, डॉ बीएस तोमर हेड साग-सब्जी  ICAR-IARI तथा भारतीय हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसायटी के सचिव डॉ सोमदत्त त्यागी के कर कमलों से प्रदान किया गया। डॉ त्रिपाठी को यह पुरस्कार उन्हें काली मिर्च की नई किस्म मां दंतेश्वरी काली मिर्च के विकास हेतु तथा ऑस्ट्रेलिया टीक एवं काली मिर्च के साथ जड़ी बूटियों की जैविक खेती की सफल जुगलबंदी के साथ ही नेचुरल ग्रीनहाउस की सफल अवधारणा के विकास आदि कई नवाचारों के जरिए उद्यानिकी विज्ञान के शोध एवं विकास में विशेष योगदान हेतु प्रदान किया गया है। उल्लेखनीय है कि डॉक्टर त्रिपाठी द्वारा मात्र सात आठ सालों में तैयार होने वाले बहु उपयोगी तथा बहुमूल्यआस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों के रोपण के जरिए विकसित किए गये एक एकड़ के नेचुरल ग्रीनहाउस की लागत मात्र डेढ से दो लाख रुपए आती है ,जबकि एक एकड़ के प्लास्टिक व लोहे से तैयार होने वाले वर्तमान पाली-हाउस की लागत लगभग 40 लाख रुपए होती है। सामान्य पाली-हाउस की उपयोगी उम्र लगभग 7 साल होती है, उसके बाद वह प्लास्टिक और लोहे का कबाड़ हो जाता है, जबकि डॉक्टर त्रिपाठी द्वारा विकसित मात्र 2 लाख रुपए लागत वाला एक एकड़ के ‘नेचुरल ग्रीनहाउस’ का मूल्य ऑस्ट्रेलिया टीक की बहुमूल्य लकड़ी और काली मिर्च से 10 सालों में कई करोड़ों का हो जाता है, इसके साथ ही इसमें कई दशक तक खेती भी की जा सकती है। इस अवसर पर डॉ त्रिपाठी ने मुख्य-वक्ता की हैसियत से देश विदेश के कृषि तथा उद्यानिक वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञों के समक्ष  अपने “नेचुरल ग्रीन हाउस” माडल की अवधारणा के समस्त वैज्ञानिक पहलुओं तथा सभी तकनीकी बिंदुओं को विस्तार से रखते हुए अपना लीड लेक्चर प्रस्तुत किया। डॉ त्रिपाठी का यह शोध आलेख अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस के सोवेनिअर जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है। एक से तीन फरवरी तक चलने वाले उद्यानिकी के तीन दिवसीय महाकुंभ में कई देशों से आए हुए कृषि वैज्ञानिक देश के कई प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, कृषि तथा उद्यानकी के विशेषज्ञों वैज्ञानिकों सहित बड़ी संख्या में कृषि शोध छात्रों की सहभागिता रही।