परंपरागत खेती के साथ वैज्ञानिक कृषि के लिए सबको आगे आने का आह्वान

परंपरागत खेती के साथ वैज्ञानिक कृषि के लिए सबको आगे आने का आह्वान

कृषि के साथ मत्स्य और पशुपालन पर भी दें विशेष जोरः हिमांशु पाठक

बांकुड़ा, 27 नवंबरः जनजातीय किसानों में कृषि के साथ मत्स्य व पशुपालन को बढ़ावा देकर उनका आर्थिक सामाजिक स्तर बढ़ाने के लिए बांकुड़ा और पुरूलिया के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पश्चिम बंग सामग्रिक अंचल उन्नय पर्षद व कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। पश्चिम बंगाल प्राणी व मत्स्य विज्ञान के सहयोग से आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद( आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने किया। डॉ. पाठक ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि जनजातीय किसानों के आर्थिक व सामाजिक स्तर ऊंचा उठाने के लिए परंपरागत खेती के साथ विज्ञान आधारित आधुनिक कृषि को बढ़ाने के लिए सभी को आगे आना होगा। आदिवासी बहुल पिछड़े क्षेत्रों में जनजातीय किसानों के आर्थिक सामाजिक विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व उससे संबंद्ध अन्य शोध संस्थान हर संभव मदद के लिए तैयार है। डॉ. पाठक ने इस क्षेत्र के बाड़बंग अंचल से आम्रपाली आम विदेशों में निर्यात होने पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में यहां के किसान नेबू, अंगुर और मुसली जैसे फलों का उत्पादन करेंगे। परंपरागत कृषि के साथ फल-फूल, मत्स्य और पशुपालन को बढ़ावा देकर किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना संभव है।

जनजातीय किसानों को बत्तख, मुर्गी और मस्त्य का चारा प्रदान करने में आर्थिक मदद करने के लिए रांची सस्थित आईसीएआर-आईआईएबी ने कदम आगे बढ़ाया है। कार्यशाला में किसानों की जीविका से संबंधित कई कृषि परियोजनाओं का भी उद्घायन किया गया। कार्यशाला में पश्चिम बंगाल मत्स्य व प्राणी विश्वविद्यालय के कुलपति, विधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध अन्य शोध संस्थानों के निदेशक व कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे।